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________________ आवश्यक का स्वरूप मानव हृदय की ओर से एक प्रश्न है-श्रावश्यक किसे कहते हैं ? उसका क्या स्वरूप है ? उत्तर में निवेदन है कि जो क्रिया, जो कर्तव्य, जो साधना अवश्य करने योग्य है, उसका नाम श्रावश्यक है। इस पर भी प्रश्न है कि उक्त स्वरूप-निर्णय से तो आवश्यक बहुत-सी चीजे ठहरती हैं ? शौचादि शारीरिक क्रियाएँ अवश्य करने योग्य हैं, अतः वे भी आवश्यक कहलाएँगी ? दुकानदार के लिए प्रतिदिन दुकान पर जाना आवश्यक है, नौकर के लिए नौकरी पर पहुँचना आवश्यक है, कामी के लिए कामिनी-सेवन करना आवश्यक है ? अस्तु, यह निर्णय करना शेष है कि श्रावश्यक से क्या अर्थ ग्रहण किया गय? आपका कहना ठीक है। ऊपर जो सांसारिक क्रियाएँ बताई गयी हैं, वे भी अावश्यक-पदवाच्य हो सकती हैं। परन्तु किस के लिए? बाह्यदृष्टि वाले, संसारी, मोह माया संलग्न एवं विषयी प्राणी के लिए। सामान्य रूप से शरीरधारी मानव प्राणी दो प्रकार के माने गए हैं-(१) बहिष्टि और (२) अन्तष्टि । बहिष्टि मनुष्यों के लिए ससार और उसका भोग-विलास ही सब कुछ है। इसके अतिरिक्त अन्य आध्यात्मिक साधना के मार्ग उन्हें अरुचिकर प्रतीत होते हैं। दिन-रात दाम ही दाम और काम ही काम में उनके जीवन के अमूल्य
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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