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________________ आवश्यक दिग्दर्शन ब्रह्मचर्य की महत्ता के सम्बन्ध में भगवान् महावीर कहते है कि देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर आदि सभी देवी शक्तियाँ ब्रह्मचारी के चरणों में प्रणाम करती हैं, क्योंकि ब्रह्मचर्य की साधना बड़ी ही कठोर साधना है। जो ब्रह्मचर्य की साधना करते हैं, वस्तुतः वे एक बहुत बड़ा दुष्कर कार्य करते हैं देव-दाणव-गंधव्वा, जक्ख-रक्खस-किन्नरा। बंभयारिं नमसंति, दुक्करं जे करेंति ते ॥ -उत्तराध्ययन-सूत्र भगवान महावीर की उपयुक्त वाणी को आचार्य श्री शुभचन्द्र भी प्रकारान्तर से दुहरा रहे हैंएकमेव व्रतं श्लाघ्यं, ब्रह्मचर्य जगत्त्रये। यद्-विशुद्धिं समापन्नाः, पूज्यन्ते पूजितैरपि ॥ -ज्ञानार्णव ब्रह्मचर्य की साधना के लिए काम के वेग को रोकना होता है। यह वेग बडा ही भयंकर है। जब आता है तो बड़ी से बड़ी शक्तियाँ भी लाचार हो जाती हैं । मनुष्य जब वासना के हाथ का खिलौना बनता है तो बडी दयनीय स्थिति में पहुँच जाता है। वह अपनेपन का कुछ भी भान नहीं रखता, एक प्रकार से पागल-सा हो जाता है। धन्य हैं वे महापुरुष, जो इस वेग पर नियंत्रण रखते हैं और मन को अपना दास बना कर रखते हैं। महाभारत में व्यास की वाणी है कि'नो पुरुष वाणी के वेग को, मन के वेग को, क्रोध के वेग को, काम
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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