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________________ प्रतिक्रमण : प्रात्मपरीक्षण हितकर नहीं है। हमारी बात सुनो, तुम्हारी कल्याण होगा। बात कुछ कठिन नहीं है, बिल्कुल सीधी-सी है। यह मत समझो कि पता नहीं हम से क्या कराना चाहते हैं ? हम तुमसे कुछ भी कठिन और कठोर काम नहीं चाहते। हम चाहते हैं, बस छोटा-सा और सीधा-सा काम! क्या तुम कर सकोगे ? क्यों न कर सकोगे, आखिर तुम चैतन्य हो, आत्मा हो, जड तो नहीं। हॉ, यो करो कि यह खुरजी श्रागे से पीछे की ओर डाल दो और पीछे से आगे की ओर ! तुम समझ गए न? जरा और स्पष्टता से समझलो ! अपने गुण और दूसरों के दोष पीठ पीछे की अोर डाल दो। बस उनकी ओर देखो भी, विचारो भी नहीं। तुम्हारे गुण तुम्हारे अपने लिए विचारने और कहने को नहीं हैं। वे जनता के लिए हैं। यदि उनमें कुछ वास्तविकता है, श्रेष्ठता और पवित्रता है तो संसार अपने आप उनका आदर सत्कार करेगा, कीर्तन अनुकीर्तन करेगा। फूल को महकने से काम है। वह महकने के गौरव की चिन्ता में नहीं घुलता । ज्योंही वह खिलता है, महकता है, पवनदेव दूर-दूर तक उसका यशोगान करता चला जाता है । बिना किसी निमंत्रण के भ्रमर-मडलियाँ अपने-आप चली आती हैं और गुन-गुन की मधुर ध्वनि से सहसा सारे वातावरण को मुखरित कर देती हैं।" -"और दूसरों के दोषों की तुम्हें क्या चिन्ता पडी है ? जो जैसा करेगा, वैसा पायेगा । तुम्हारा काम यदि किसी की कोई भूल देखो तो उसे प्रेमपूर्वक समझा देने का है। यदि वह नहीं मानता है तो तुम्हारी क्या हानि हैं ? तुम व्यर्थ ही उसकी ओर से घृणा और द्वेष का जहर भर कर अपने मन को अपवित्र क्यों करते हो ? इस प्रकार घृणा रखने से कुछ लाभ है ? नहीं, अणुमात्र- भी नहीं। हमाग मार्ग पाप से घृणा करना सिखाता है, पापी से नहीं। पाप कभी अच्छा नहीं हो सकता; परन्तु पापी तो पाप का परित्याग करने के बाद अच्छा हो जाता है, भला हो जाता है। क्या चोर चोरी छोडने के बाद पवित्रता .का सम्मान नहीं पाता? क्या शराबी शराब का त्याग करने के बाद
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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