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________________ आवश्यक का आध्यात्मिक फल । सामायिक सामाइएणं भंते । जीवे कि जणयइ ? सामाइएणं सावज्जजोगविरई जणयइ । 'भगवन् ! सामायिक करने से इस आत्मा को क्या लाभ होता है ? 'सामायिक करने से सावध योग- पापकर्म से निवृत्ति होती है। चतुर्विंशतिस्तव चउव्वीसथए भंते जीवे कि जणयइ ? चउव्वीसस्थएण दसणविसोहि जणयइ । 'भगवन् ! चतुर्विशतिस्तव से प्रात्मा को किस फल की प्राप्ति होती है ? चतुर्विशतिस्तव से दर्शन-विशुद्धि होती है । वंदना ' वंदएण भते । जीवे कि जणयइ? . वंदपएणं नीयागोयं कम्म खवेइ, उच्चागोयं निबंधइ, सोहग्गं चण अपडिहयं आणाफलं निवत्तेइ, दाहिणभाव च णं जणयइ । 'भावन् ! वन्दन करने से श्रात्मा को क्या लाभ होता है ?? 'वन्दन करने से यह प्रात्मा नीच गोत्र कर्म का क्षय करता है,
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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