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________________ ६४] अतिचार केवल जानने के लिए नहीं है, बचने के लिए भी हैं । जानी हुई बातों को केवल दिमाग की वस्तु बना कर रक्खा जाय और उनका आचरण से कोई सरोकार नहीं रक्खा जाय तो ऐसी जानकारी की कोई उपयोगिता नहीं होती। ज्ञान वही सार्थक है जिसके अनुसार वर्ताव किया जाता है । 'ज्ञानं भार : क्रियां बिना' अगर ज्ञान के अनुसार प्रवृति नहीं की गई तो वह ज्ञान बोझ रूप ही है। परिग्रह परिमाण पांच अणुव्रतों में अन्तिम है और चार व्रतों का संरक्षण करना एवं बढ़ाना इसके आधीन है। परिग्रह को घटाने से हिंसा, असत्य, अस्तेय, कुशील, इन चारों पर रोक लगती हैं । अहिंसा आदि चार व्रत अपने आप पुष्ट होते रहते हैं। परिग्रह परिणाम व्रत से महत्व बढ़ता नही, घटता है। जीवन में शान्ति और सन्तोष प्रकट होने से सुख की वृद्धि होती है । निश्चिन्तता और निराकुलता आती है । ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से धर्म क्रिया की ओर मनुष्य का चित्त अधिकाधिक आकर्षित होता है। इस व्रत के ये वैयक्ति लाभ हैं। किन्तु सामाजिक दृष्टि से भी यह व्रत अत्यन्त उपयोगी है । आज जो आर्थिक वैषम्य दृष्टि गोचर होता है, इस व्रत के पालन न करने का ही परिणाम है। आर्थिक वैषम्य इस युग की एक बहुत बड़ी समस्या है। पहले बड़े-बड़े भीमकाय यंत्रों का प्रचलन न होने के कारण कुछ व्यक्ति आज की तरह अत्यधिक पूंजी एकत्र नहीं कर पाते थे; मगर आज यह बात नहीं रही। आज कुछ लोग यंत्रों की सहायता से प्रचुर धन एकत्र कर लेते हैं तो दूसरे लोग धनाभाव के कारण अपने जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूत्ति करने से वंचित रहते हैं । उन्हें पेट भर रोटी, तन ढंकने को वस्त्र और औषध जैसी चीजें भी उपलब्ध नहीं । इस स्थिति का सामना करने के लिए अनेक वादों का जन्म हुआ है । समाजवाद, साम्यवाद, सर्वोदय वाद अादि इसी के फल हैं। प्राचीन काल में ...' 'अपरिग्रह वाद के द्वारा इस समस्या का समाधान किया जाता था। इस वाद की विशेषता यह है कि यह धार्मिक रूप में स्वीकृत है, अतएव मनुष्य इसे बलात् नहीं, स्वेच्छा पूर्वक स्वीकार करता है। साथ ही धर्मशास्त्र महारंभी यंत्रों के
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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