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________________ [६३ : वह वस्तुतः एक ही कहा जाता है, जब तक उसमें विशेष परिवर्तन न हो। 1इस प्रकार मकान का परिमाण करने में दृष्टि या लक्ष्य की प्रधानता. . होती है। ___ जमीन-जायदाद आदि के किये हुए परिमाण का व्रत सापेक्ष अतिक्रमण करना प्रथम अतिचार हैं । किसी ने व्रत ग्रहण करते समय एक या दो मकानों की मर्यादा की। बाद में ऋण के रुपयों के बदले उसे एक और मकान प्राप्त हो गया। अगर वह उसे रख लेता है तो यह अतिचार कह लाएगा। इसी प्रकार एक खेत बेच कर या मकान बेचकर दूसरा खेत या मकान खरीदना भी अतिचार है यदि उसके पीछे अतिरिक्त अर्थलाभ का दृष्टि कोण हो। तात्पर्य यह है कि इस व्रत के परिमाण में दृष्टि कोण मुख्य रहता है और व्रतधारी को सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कि उसने तृष्णा, लोभ एवं असन्तोष पर अंकुश लगाने के लिए व्रत ग्रहण किया है अतएव ये दोष किसी बहाने से मन में प्रवेश न कर जाएं और ममत्व बढ़ने - नहीं पाए। . . . व्रती को नौ प्रकार के परिग्रह के अतिक्रमण से बचना चाहिए(१) जमीन (२) जायदाद (३) स्वर्ण (४) चांदी (५) घोड़ा आदि (७) धन (८) धान्य और (8) कुप्य-फर्नीचर वर्तन अादि । पशुओं की सन्तति उत्पन्न होने पर संख्या में वृद्धि हो जाती है, यह स्वभाविक है । किन्तु एक तो उस वृद्धि को लाभ का कारण बनाना और दूसरे संरक्षण की भावना से उनको रखना अलग-अलग बातें है । ऐसी बातों का स्पष्टी करण अगर व्रत ग्रहण करते समय ही कर लिया जाय तो अधिक ") अच्छा । बाद में किया जाय तो इस बात की सावधानी रखनी चाहिए कि मेरे किये हुए निर्णय में कहीं मेरी ममत्व दुद्धि तो मुझे धोखा नहीं दे रही है ! इस प्रकार को जागरूकता व्रत की रक्षा करने में सहायक होगी। किसी ने पचास । हजार के धन का परिमाण किया, फिर व्याज में अतिरिक्त धन आ गया । उस ... अतिरिक्त धन को अगर कोई अतिक्रमण नहीं मानता तो यह अनुचित है।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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