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________________ ..... . जब आवे संतोष धन, सब धन धूल समान । : - . धनवान् मनुष्य भी अधिक धन की लालसा से प्रेरित होकर बड़े-बड़े आरंभ करता है । भयानक से भयानक दुष्कर्मों को लालच करवाता है । और जिस धन के लिए मनुष्य इस लोक के सुखों का परित्याग करता है और परलोक को बिगाड़ता है, वह धन उसके क्या काम आता है ? इष्ट जन का वियोग क्या धन से टल सकता है ? रोग आने पर क्या धन काम आता है ? जब विकराल मृत्यु अपना मुख फाड़ कर सामने आती है तो धन देकर उसे लौटाया जा सकता है ? सोने-चांदी और हीरों से भरी तिजोरियां क्या मौत को टाल सकती हैं ? आखिर संचित किया हुआ धन का अक्षय कोष किस बीमारी की दवा है ? चाहे गरीब हो या अमीर, खाएगा तो खाद्य पदार्थ ही, हीरा-मोती तो खा नहीं सकता। फिर अनावश्यक धनराशि एकत्र करने से क्या लाभ है ? मानव जीवन जैसी अनमोल निधि को धन के लिए विनष्ट कर देने वाले क्यों नहीं सोचते कि धन उपार्जन करते समय कष्ट होता है, उपार्जित हो जाने के पश्चात् उसके संरक्षण की प्रतिक्षण चिन्ता करनी पड़ती है और संरक्षण का प्रयत्न असफल होने पर जब वह चला जाता है, तब दुःख और शोक का पार नहीं रहता। इस प्रकार प्रत्येक परिस्थिति में धन दुःख, चिन्ता, शोक और किसी संस्कृत कवि ने ठीक - ही कहा है .. अर्थानामर्जने दुःखं, अजितानाञ्चरक्षणे । . .. पाये दुःखं व्यये दुःखं, धिगर्थं शोक भाजनम् । ___ सन्ताप ही देता है । वास्तव में धन जीवन के लिए वरदान : नहीं, अभिशाप है । एक अकिंचन निस्पृह योगी को जो अद्भुत आनन्द प्राप्त होता । है वह कुबेर की सम्पदा पालने वाले धनाढ्य को नसीब नहीं हो सकता। : ... ...... कहा जा सकता है कि धन भले ही शान्ति प्रदान न कर सकता हो तथापि गृहस्थ के लिए वह अनिवार्य तो है ही। गृहस्थी का काम धन के बिना नहीं चल सकता। इस कथन में सचाई मानी जा सकती है मगर आवश्यकता .से. अधिक धन के संचय का औचित्य तो इस तर्क से भी नहीं होता। अमर्याद
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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