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________________ ३८३ लिए जैसे बाहरी उपाय किये जाते हैं, उसी प्रकार आन्तरिक उपाय भी किये जाने चाहिए । यदि अन्तर के कारण को दूर कर दिया गया तो बाह्य कारण मनार ही आप दूर हो जायेगा। युद्ध के वातावरण के रूप में देश पर जो संकट आया है, वह सामूहिक पाप का प्रतिफल है। सामूहिक कर्म के दूपित होने से करोड़ों लोगों के मन पर उसका असर पड़ रहा है । मोर्चे पर युद्ध करने वाले तो गिनती के सैनिक हैं ... परन्तु शासक, व्यवसायी, कृषक मजदूर आदि सभी के मन में अशान्ति है, देश संक्ट ग्रस्त है, अतएव सभी के चित्त पर दुःख की छाया होना स्वाभाविक है । अाक्रमण का मुकाबिला करने का व्यवहारिक तरीका शक्ति से प्रतिरोध करना तो.. माना ही जाता है, किन्तु हमें आत्मपरिक्षण भी करना चाहिए कि हमारे भीतर कहीं गड़बड़ तो नहीं है ? पूर्वकाल में अकाल आदि संकट आने पर राजा लोग अात्म शोधन करते थे। शासक अपनी त्रुटियों और स्खलताओं का प्रतीकार - करते थे। : .. .भारत को आज भी अपनी पुरानी संस्कृति का निर्वाह करना चाहिए। .:., शासक वर्ग को यात्म निरीक्षण करना चाहिए और अपनी त्रुटियों को तत्काल ..दूर कर देना चाहिए । भारतीयों की सब से बड़ी गलती यह है कि स्वाधीनता पाने .... के पश्चात् उन्होंने नैतिकता को एकदम विस्मृत कर दिया है । पश्चिम के प्रभावः .. में प्राकर भारत ने अपनी मौलिक मर्यादा और धर्मसंस्कृति को त्याग दिया है। तथा भक्ष्य-अभक्ष्य, गम्य-अगस्य और पाप पुण्य के विवेक को भुला दिया है। लोगों में लालच, तृष्णा और स्वार्थपरायणता बढ़ती जा रही है । अर्थलाभ ही.. मुख्य दृष्टिकोण बन गया है इन सब कारणों से प्रामाणिकता गिर गई है तथा .... नैतिक दृष्टि से देश का पतन होता जा रहा है ! इन सब बुराइयों को दूर किये बिना . देश का सामूहिक जीवन समृद्ध और सुखमय नहीं बन सकता और इन बुराइयों .: को दूर करने का सर्वोत्तम उपाय धर्म की शरण में आना है। - धर्म की रक्षा करना अपनी रक्षा करना है। धर्म का विनाश आत्मविनाश का आह्वान करना है ठीक ही कहा गया है
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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