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________________ [ ३८१: साधन भी उस समय नहीं थे। मगर आज सैनिक और नागरिक सभी युद्ध की + ज्वालाओं में भस्म होते हैं और थोड़ी ही देर में घोर प्रलय का दृश्य उपस्थित... .. हो जाता है। ऐसी स्थिति में युद्ध की बात कहना और किसी पर युद्ध थोपना बड़ी से बड़ी मूर्खता है। .. संसार के कतिपय शान्ति प्रेमियों ने इस बुराई की गहराई को समझा है। उन्होंने अावाज बुलन्द भी की है । कि-युद्ध बंद करो, निश्शस्त्रीकरण को'. . . अपनायो और संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के द्वारा अपने मतभेदों : को दूर करो मगर यह आवाज अभी तक कारगर साबित नहीं हो सकी। इसके अनेक कारण हैं। प्रथम तो कुछ ल ग शान्ति में विश्वास ही नहीं करते और वे सदेव लड़ने-लड़ाने की कोशिशें करते रहते हैं। दूसरे संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी जिम्मेवर संस्था को जैसा निष्पक्ष और न्यायशील होना चाहिए, वह वैसी नहीं - है। वह भी बड़े. राष्ट्रों के स्वार्थ पूर्ण दृष्टिकोण से संचालित होती है। इस ... कारण सच्चा न्याय करने में असफल रही है। मगर इन कारणों के अतिरिक्त सबसे बड़ा जो कारण है । वह मैं मानता हूँ कि धर्मभावना की कमी है। कोई :: .. भी राजनीतिक समाधान तब तक स्थायी और कार्य कारी नहीं हो एकता जब .. तक उसे धार्मिक रूप में मान्य न किया जाय । राजनीतिक समाधान दिमाग को . . ही प्रभावित करता जब कि धार्मिक समाधान प्रात्मा को स्पर्श करता है और इसी .. कारण व उसका प्रभाव स्थायी होता है। हृदय की शुद्धि के विना बाहर का. - कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता। विश्वशान्ति के अन्तर्राष्ट्रीय प्रयत्नों के. बावजूद लडाइयां हो रही हैं और होती रहेंगी. उनके रूकने का एक ही अमोघ उपाय है और वह यही कि मानव हिंसा को ईश्वर के आदेश के रूप में निषिद्ध माने और अहिंसा एवं पारस्परिक सहयं ग को धार्मिक विधानं मान कर हृदय से उसको स्वीकार करे। .....मनुष्य को चाहिए कि वह आन्तरिक वासना के. शान्त करे, ऊपर से ही ... शान्ति की बाते न करे । मैत्री के नारों से काम नहीं चल सकता, अन्तरतर में ....
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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