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________________ ३२२ ) यह समझ लेना आवश्यक है। सोने की डली लोभ रूपः विकार की उत्पत्ति में । कारण है । किन्तु सोने और चांदी की राशि कर दी जाय और कोई गाय या बैल वहां से निकले तो उस राशि के प्रति उनके मन में लोभ नहीं जागंगा । वे उसे पैरों तले कुचल देंगे या बिखेर देंगे। इसके विपरीत घास, फल, सब्जी, . खली आदि वस्तुएं पड़ी हों तो गाय-बैल के मन में लोभ उत्पन्न होगा और वे उन्हें खा जाएंगे। इस प्रकार घास. आदि उनके लोभ को जगाने में निमित्त बने, मगर सोने की डली निमित्त नहीं बनी। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बाह्य कारण एकान्त कारण नहीं है। इसी प्रकार अन्तरंग कारण भी अकेला कार्यजनक नहीं होता। दोनों का समुचित समन्वय ही कार्य को उत्पन्न करता है। गृहस्थ आनन्द को राह चलते-चलते सोने, चांदी, हीरे, जवाहरात की ढेरी मिल जाती तो उसके मन में लोभ न होता। ये वस्तुएं उसके मन को विकृत नहीं कर सकती थीं । मोक्षमार्ग में प्रवृत्त होने के लिए मोह को क्षीण करना आवश्यक है । इसके लिए ज्ञानाचार की आवश्यकता है । प्राचार पांच माने गए हैं। उनमें प्रथम ज्ञानाचार और अन्तिम वीर्याचार है । ज्ञान यदि . विधिपूर्वक-श्राचार के साथ प्राप्त किया जाय तो वह जीवनशोधक बनेगा।.. अगर ज्ञान की आराधना के बदले विराधना की जाय तो अंशान्ति होगी और अन्धकार में भटकना होगा । ज्ञान की आराधना सिखलाई जाती है, विराधना नहीं । विराधना से बचने का उपाय बतलाया जाता है । विक्षेप, अज्ञान, प्रमाद, आलस्य, कलह प्रादि से विराधना होती है । ___ भरतखण्ड में अजितसेन राजा का वरदत्त नामक एक पुत्र था । वह राजा का अत्यन्त दुलारा था। उसका बोध नहीं बढ़ पाया । अच्छे कलाविदों के पास रखने पर भी वह ज्ञानवान नहीं बन सका। उसकी यह स्थिति देखकर राजा वहत खिन्न रहता । सोंचता-मूर्ख रहने पर यह प्रजा का पालन किस प्रकार .... करेंगा । . पिता बनजाना बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है अपने पितृत्व का निर्वाह .. करना। पितृत्व का निर्वाह किस प्रकार किया जाता है, यह बात प्रत्येक पुरुष
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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