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________________ - को पिता बनने से पहले ही सीख लेना चाहिए । जो पिता बन कर भी पिता के .. कर्तव्य को नहीं समझते अथवा प्रभाव वश उस कर्तव्य का पालन नहीं करते। वे वस्तुतः अपनी सन्तान के घोर शत्रु हैं और समाज तथा देश के प्रति भी । अन्याय करते हैं। सन्तान को सुशिक्षित और सुसंस्कारी बनाना पितृत्व के उत्तरदायित्व को निभाना है। सन्तान में नैतिकता का भाव हो, धर्म प्रेम हो, गुणों के प्रति आदरभाव हो, कुल की मर्यादा का भान हो । तभी सन्तान सुसंस्कारी कहलाएगी। मगर केवल उपदेश देने से ही सन्तान में इन सद्गुणों का विकास नहीं हो सकता ! पिता और माता को अपने व्यवहार के द्वारा इनको शिक्षा . देना चाहिए। जो पिता अपनी सन्तान को नीति-धर्म का उपदेश देता है पर अनीति और अधर्म का प्राचरण करता है, उसकी सन्तान दंभी बनती है, नीतिधर्म उसके जीवन में शायद ही आते हैं। ... इस प्रकार प्रादर्श पिता बनने के लिए भी पुरुष को साधना की प्रावश्यकता है । माता को भी श्रादर्श गृहिणी बनना चाहिए। इसके बिना किसी भी पुरुष या स्त्री को पिता एवं माता बनने का नैतिक अधिकार नहीं। राजा अजितसेन ने सोचा-मैने पुत्र उत्पन्न करके उसके जीवन निर्माण का उत्तरदायित्व अपने सिर पर लिया है। अगर इस उत्तरदायित्व को मैं न निभा सका तो पाप का भागी होऊंगा। इस प्रकार सोच कर राजा ने पुरस्कार देने की घोषणा करवाई जो राजकुमार को शिक्षित कर देगा उसे यथेष्ट पुरस्कार दिया जाएगा । मगर राजकुमार कुछ न सीख सका । उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर ही रहा। .. ... शिक्षा के अभाव के साथ उसका शारीरिक स्वास्थ्य भी खतरे में पड़ गया। उसे कोढ़ का रोग लग गया। लोग घृणा की दृष्टि से देखने लगे । सैंकड़ों दवाएं चलीं पर कोढ़ न गया । ऐसी स्थिति में विवाह-सम्बन्ध कैसे हो सकता. था ? कौन अपनी लड़की देने को तैयार होता ? । - एक सेठ की लड़की को भी दैवयोग से ऐसा ही रोग लग गया। तिलक
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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