SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६३२१ . ... प्रत्येक वस्तु की अपनी-अपनी जगह पर महिमा है। एक गुण दूसरे गुण से सापेक्ष है । परस्पर सापेक्ष सभी गुणों की यथावत् आयोजना करनेवाला ही .. . अपने जीवन को ऊंचा उठाने में समर्थ हो सकता है । हेय, शेय, और उपादेय.. का ज्ञान हो जाने पर भी यदि कोई उस पर श्रद्धा नहीं करेगा तो वह वैसा ही... है जैसे कोई खाकर पचा न सके । इससे रस नहीं बनेगा । वह ज्ञान जो श्रद्धा का रूप धारण नहीं करेगा, टिक नहीं सकेगा। श्रद्धा सम्पन्न ज्ञान की विद्यमानता में भी यदि चारित्र गुण का विकास नहीं होगा तो वह ज्ञान व्यर्थ हैं। ज्ञान के ... - प्रकाश में जब चारित्र गुण का विकास होता है तो वह पापकर्म को रोंक देता ... है। फिर कुशील, हिंसा, असत्य आदि पाप नहीं आ पाते । तप का काम है शुद्धि करना वह संचित पापकर्म को नष्ट करता है। कर्मों को निश्शेष करने का उपाय यही है कि संयम का आचरण करके नवीन कर्मों के बन्ध को निरुद्ध कर दिया जाय और तप के द्वारा पूर्व संचित कर्मों को नष्ट किया जाय । इस तरह दोहरे कर्तव्य से समस्त कर्म क्षीण हो . . जाते हैं और प्रात्मा अपनी स्वाभाविक मूल अवस्था को प्राप्त कर लेता है । यही मुक्ति कहलाती है। .. : ज्ञान वही मुक्ति का कारण होता है जो सम्यक् हो। यों तो ज्ञान का - आविर्भाव ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम अथवा क्षय से होता है, मगर सम्यग् ....ज्ञान के लिए मिथ्यात्व मोह के क्षय, क्षयोपशम या उपशम की भी आवश्यकता होती है । ज्ञानावरण का क्षयोपशम कितना ही हो जाय, यदि मिथ्यात्व मोह .... का उदय हुआ तो वह ज्ञानं मोक्ष की दृष्टि से कुज्ञान ही रहेगा। :: अनन्त काल से यह प्रात्मा संसार में भ्रमण कर रही है । अब तक उसने .. अपने शुद्ध स्वरूप को नहीं पाया । जब बाह्य और अन्तरंग निमित्त मिलते हैं तब सम्यग्ज्ञान, दर्शन आदि की प्राप्ति होती है और जिसे प्राप्ति होती है उसका परम कल्याण हो जाता है। " बाह्य निर्मित किसी भावः की जागृति में किस प्रकार कारण बनता है,
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy