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________________ पोषधव्रत के अतिचार Ud N अंहिसा धर्म का प्रधान अंग है और संसार के समस्त धर्म सम्प्रेदाय एक स्वर से अहिंसा की महिमा को स्वीकार करते हैं । यद्यपि यह सत्य है कि जब तक जीव और अजीव की. पूरी जानकारी न हो जाय तब तक अहिंसा के . परिपूर्ण स्वरूप को समझना और उसका आचरण करना संभव नहीं है, और - इसके लिए विशिष्ट लोकोत्तर ज्ञान की अपेक्षा रहती है। तथापि जिसने जिस रूप में जीवतत्व को पहचाना, उसी रूप में अहिंसा का समर्थन और अनुमो .. दन किया है। हिंसा को धर्म मानने वाला कोई सम्प्रदाय या पथ नहीं है । ज हिंसा के विधायक हैं वे भी उस हिंसा को अहिंसा समझ कर ही विधान करते हैं। जैन धर्म के प्रवर्तक सर्वज्ञ थे, अतएवं उन्होंने सूक्ष्म और स्थूल, दृष्य और अदृश्य, सभी प्रकार के जीवों को समझ. कर पूर्ण अहिंसा का उपदेश दिया है । श्रीमद् प्राचारांग सूत्र के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता हैं। इस... सूत्र में पृथ्वीकाय से लेकर वनस्पतिकाय तक के जीवों की रक्षा करना मुनिधर्मः . है, यह अत्यन्त सुन्दर और सुगम ढंग से समझाया गया है । चलते-फिरते. अम. . जीवों की अहिंसा का विधान तो है ही। . .. ___ अहिंसा का जो उपदेश दिया गया है, उसका प्रधान उद्देश्य आत्म-शुद्धि है। जब तक अन्तःकरण में पूर्णरूपेण मैत्री और करुणा की भावना उदित :.. नहीं होती तंत्र तक आत्मा में कालिमा बनी रहती हैं और शुद्ध प्रात्मस्वरूप ... प्रकट नहीं होता। उसे कालिमा को हटा कर प्रात्मा को निर्मल बनाना और .
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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