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________________ - २६५ __ स्थान का अन्धेरा दूर नहीं कर सकता। कोने-कोने का अन्धेरा दूर करने के लिए तो. दीपक काम आता है । श्रतज्ञान दीपक के समान है। ... जब मानव के मानस में ज्ञान का प्रदीप जाग उठता है तो कुटेव और ___ अज्ञानता की स्थिति का अन्त हो जाता है । सत्पुरुषों ने ज्ञान-प्रदीप जलाया है। भगवान् महावीर के ज्ञान का भास्कर ४२ वर्ष की अवस्था में उदित हो .. गया था। उसके उदित होने पर उनकी आत्मा अलौकिक एवं असाधारण आलोक से विभूषित होगई । बारह वर्षों तक वे इसके लिए पुरुषार्थ करते रहे। - केवल ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् भगवान् ने भिक्षुकों से लेकर राजाओं तक के अज्ञान के निवारण का सफल प्रयत्न किया। आपका प्ररक सन्देश पाकर नौ लिच्छवी. और नौ मल्ली राजा धर्म श्रद्धालु बने । तात्कालिक गणतन्त्र के अधिपति सम्राट चेटक का भी अंज्ञान-मोह दूर हुआ। .. संसार के विशाल वैभव में रह कर भी मनुष्य के लिए परम साधना आवश्यक है। मनुष्य को समझना चाहिए कि सांसारिक वैभव का सम्बन्ध शरीर के साथ है, सिर्फ एक भव तक सीमित है। शरीर त्यागने के पश्चात् जगत् का बड़े से बड़ा वैभव भी बिछुड़ जाता है। अगले जन्म में वह काम नहीं आता । उससे आत्मा का किंचित् भी उपकार नहीं होता। आत्मोपकार अथवाः प्रात्महित के लिए तो वहीं साधना उपयोगी हैं जिससे आत्मिक विभूति की वृद्धि होती है । इस तथ्य को भगवान् महावीर ने समझाया और जिन महापुरुषों ने समझा उनकी सुषुप्त चेतना जागृत हो गई। चेटक जैसा सम्राट भी श्रावक बन गया। राज्याधिकारी एवं राजाधिराज होकर भी उसने श्रावक के बारह व्रतः अंगीकार किये । उसने संकल्प किया कि मैं जान-बूझ कर निरपराध त्रसजीवों की हिंसा नहीं करूंगा। रक्षात्मक कार्य करूंगा, संहारात्मक कार्य नहीं करूंगा। हानिकारक, धोखाजनक और अविश्वासकारक 'असत्य का प्रयोग नहीं करूंगा:। उसने किसी के अधिकार को छीन कर लोलुपता के वशीभूत होकर राज्य की सीमाओं को बढ़ाने की चेष्टा नहीं की। श्रावकोचित सभी व्रतों को अङ्गीकार किया।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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