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________________ २६६ ] गणतन्त्र मिली-जुली शासन व्यवस्था है । इस व्यवस्था में जो सम्मिलित । होता है उसके लिए व्रत ग्रहण करना साधारण बात नहीं है। चेटक चाहता तो वहाना कर सकता था, किन्तु साधना के क्षेत्र में आत्मवंचना को तनिक भी स्थान नहीं । अतएव साझेदारी की राज्य-व्यवस्था होने पर भी उसने किसी प्रकार का वहाना नहीं किया। अठारह राजा जिस गण में सम्मिलित थे, उस गणराज्य का उत्तरदायित्व कुछ कम नहीं रहा होगा। एक राज्य को संभालना और इस बात का खयाल रखना कि प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट न हो, राज्याधिकारी कोई अन्यायपूर्ण कार्य करके प्रजा को कष्ट न पहुँचावे, सबल निर्बल को न दबाबे, प्रजाजनों में नीति और धर्म का प्रसार हो, किसी प्रकार के दुर्व्यसन उसमें घर न करने पावें, सभी लोग अपने-अपने कर्तव्य का पालन करते हुए परस्पर सहयोग करें, राजा-प्रजा के वीच आत्मीयता का भाव बना रहे और साथ ही कोई लोलुप राजा राज्य की सीमा का उल्लंघन न कर सके, साधारण वात नहीं है । फिर चेटक को तो अठारह राज्यों के गण का अधिपति होने के कारण सीमा पर दृष्टि रखनी पड़ती थी। सबको चिन्ता करनी पड़ती थी। फिर भी वह अपनी आत्मा को नहीं भूला। उसने लौकिक कर्तव्यपालन की धुन में लोकोत्तर कर्तव्यों को विस्मृत नहीं किया। एक विवेकशील और दूरदर्शी सद्गृहस्थ के समान वह दोनों प्रकार के उत्तरदायित्त्व को बिना किसी विरोध के निभाता रहा। एक ओर वह गणतन्त्र का अधिपतित्व करता था तो दूसरी ओर अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन पीषध व्रत का भी आराधन करता था। पौषध व्रत में समस्त प्रारंभ-समारंभ का परित्याग करके धर्मध्यान में दिन-रात व्यतीत करना होता है। यह एक प्रकार से चौबीस घण्टों तक साधुपन का अभ्यास है । तन का पोषण तो पशु-पक्षी भी करते हैं, इसमें मनुष्य की कोई विशेषता नहीं है, प्रात्मा का पोषण करना ही मानव की विशिष्टता है और उसी से जीवन ऊँचा बनता है। इसी विश्वास से चेटक पोपध करता था।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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