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________________ २६४ एक रूप वाह्य प्रकाश का है, दूसरा अन्तिरिक प्रकाश की । एक आज. चमक कर कल समाप्त हो जागया, दूसरा शाश्वत रहेगा। . दीपावली का यह संदेश है कि दीपक-प्रकाश के अभाव में अंधेरी रात में घ मने वाला भटक जाएगा, इसी प्रकार ज्ञान की रोशनी में न चलने वाला टक्करें खाकर अपना विनाश बुला लेंगा। भगवान् महावीर जन्म से ही अवधिज्ञान- नामक अतीन्द्रिय ज्ञान से सम्पन्न थे। दीक्षा अंगीकार करते ही उन्हें मनःपर्यय ज्ञान भी प्राप्त हो गया था। किन्तु वे इतने ही से सन्तुष्ट न हुए। उन्होंने परिपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए उग्र तपश्चरण किया और उसे प्राप्त किया। पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् वे दूसरों को भी ज्ञान देने में समर्थ हुए। इसी कारण उन्हें ज्ञान का दीपक कहा गया है। पेट्रोमेक्स और बिजली का बल्व दूसरे दीपकों को प्रकाशित करने में समर्थ नहीं होता। दूसरे दीपकों को तो टिमटिमाता मन्द प्रकाश वाला दीपक ही जला सकता है । टार्च बल्व आदि में यह क्षमता नहीं हैं कि वे दूसरे को प्रकाशित कर सकें । दीपक में ही यह विशेषता है कि उससे हजारों और लाखों दीपक जलाये जा सकते हैं । ज्ञानी को प्रदीप की उपमा दी गई है, क्योंकि उसमें भी दीपक की खूबी मौजूद रहती हैं। वह अनेकों को ज्ञान की ज्योति से जाज्वल्यमान कर सकता है। - केवल ज्ञान सभी ज्ञानों में श्रेष्ठ है, प्रतिपूर्ण हैं, अनन्त है, अनावरण है, मगर वह दूसरों को प्रत्तिबुद्ध नहीं कर सकता। केवली का वचनयोग ही दूसरों को ज्ञान का प्रकाश देने में निमित्त होता है। श्रुतज्ञान अमूक और शेष ज्ञान मूक हैं श्रुतज्ञान के माध्यम से एक साधक दूसरों के अन्तःकरण को जागृत कर सकता है । यह श्रुतज्ञान की अन्य ज्ञानों से विशिष्टता है।.... 'ज्ञान की सूक्ष्मती की दृष्टि से केवल ज्ञान सब से अधिक सूक्ष्म है क्योंकि उसमें पूर्णता है, मगर केवल ज्ञान रूपी सूर्य बहुत तेज होने पर भी प्रत्येक
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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