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________________ _ २५५ . के विष से प्रभावित कोई भी जीव सहसा समभाव की उच्चतर भूमिका पर नहीं पहुंच सकता । समभाव को प्राप्त करने और बढ़ाने के लिए अभ्यास की अावश्यकता होती है। जैसे अखाडे में व्यायाम करने वाला व्यक्ति अपने • शारीरिक बल को बढ़ाता है, वैसे ही सामायिक द्वारा साधक अपनी मानसिक दुर्वलताओं को दूर करके समभाव और संयम को प्राप्त करता है । अतएव प्रकारान्तर से सामायिक साधनों को मन का व्यायाम कहा जा सकता है। सामायिक व्रत की आराधना करने में जो अतिचार लग सकते हैं, वे इस प्रकार हैं (१) मरणदुप्परिणहारणे-सामयिक का पहला अतिचार मनः दुष्परिणधान है जिसका तात्पर्य है मन का अशुभ व्यापार । सामायिक के समय में साधक को ऐसे विचार नहीं होने चाहिए जो सदोष या पापयुक्त हो । सामायिक में मन आत्मोन्मुख हो कर एकाग्र बन जाना चाहिए । एकाग्रता को खण्डित करने वाले विचारों को मन में स्थान देना या ऐसे विचारों का मन में प्रवेश होना साधक की पहली दुर्वलता है। मन में बड़ी शक्ति है । उसके प्रशस्त व्यापार से स्वर्ग मोक्ष और अप्रशस्त व्यापार से नरक तैयार समझिए । कहा है. मन एव मनुष्याणां कारणं वन्धमोक्षयोः । .. किसी जलाशय का पानी व्यर्थ बहाया जाय तो कीडे उत्पन्न करता और संहारक बन जाता है और यदि उसो जल का उचित उपयोग किया जाय तो अनेक खेत लहलहाने लगते हैं। मानसिक शक्ति का भी यही हाल है। मानसिक शक्ति के सदुपयोग से अलौकिक शान्ति प्राप्त की जा सकती है । अतएव मन को काबू में करना- साधना का प्रधान अंग है । मन में गर्व, क्रोध, कामना, भय आदि को स्थान देकर यदि कोई सामायिक करता है तो - ये सव मानसिक दोष इसे मलीन बना देते हैं। पति और पत्नी में या पिता . और पुत्र में आपसी रंजिश पैदा हो जाय तव रुष्ट होकर काम न करके
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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