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________________ अचौर्य व्रत को अंगीकार करने वाले गृहस्थ को न तो मिलावट का धन्धा करना चाहिए और न असली के बदले नकली वस्तु देना चाहिए। मिलावट करके देना या नकली चीज देना धोखा है। यह अधर्म है । धर्म का प्राण है सरलता और निर्मलता। - जो इन पांच दोषों से बचेगा वह प्रामाणिक कहलाएगा, और कर्म बन्ध से हल्का होकर अपने भविष्य को मंगलमय बनाएगा। इन अतिचारों से ... बचे रहने से व्रतों की सुन्दर भूमिका तैयार हो जाती है। .. धर्म शिक्षा को जीवन में. रमाने के लिए काम वासना को उपशान्त एवं नियंत्रित करना, मोह की प्रबलता को दबाना और अमर्याद लोभ का निग्रह करना आवश्यक है । ऐसा नहीं किया गया तो धर्म के संस्कार जीवन में वद्धमूल नहीं हो सकेंगे। जब यात्मा में सम्यग्ज्ञान की सहस्त्र-सहन किरणें फैलती हैं और पालोक से जीवन परिपूर्ण हो जाता है, तब काम, क्रोध और - लोभ का सघन अन्धकार टिक ही नहीं सकता। । उदाहरण रूप में देखिये- . .. . महामुनि स्थूलभद्र की संगति से पाटलिपुत्र की नगर नायिका अपने - जीवन में आमूल परिवर्तन कर लेती है । रूपकोशा के द्वार पर पण्डित की पंडिताई, कुलीन की कुलीनता और साधु की साधना हवा हो जाती थी। उसके विलास-भवन में, वासना की धधकती धूनि में संयम, शील और सदाचार भस्म हो जाते थे। मगर यह नर-वीर श्राद्भुत योगी था जिसने चार मास तक उसके घर में ही डेरा डाला । काजल की कोठरी में से वह अछूता निकला। यही नहीं, उसने काजल को अपने सान्निध्य से स्वर्ण रूप में परिवर्तित कर दिया। जामन डालने से दूध दही के रूप में बदल जाता है । मुनि ने वाणी का ऐसा जामन में डाला कि कोशा की भावना रूपी दूध में परिवर्तन आया और वह दही . के रूप में जमने लगी। उसने देशविरति-श्रावकधर्म को अंगीकार कर लिया। सद्भावना और हित भावना से उच्चरित सुवक्ता की वाणी का
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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