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________________ १४ समझू शंके पाप से, अनसमझू हरपंत । वे लूखा वे चीफणा, इन विध कर्म वढंत ।। समझदार अपना कदम सावधानी से रखना है। वह पाप में उसी प्रकार बचता है जैसे मैले से बचा जाता है । अवोध बालक मेले के अपर हंसते-हंसते निकल जाता है किन्तु विवेकवान् व्यक्ति उससे दूर रहता है। इसी प्रकार समझदार हिंसा, झूठ, चोरी ग्रादि से तथा क्रोध लोभ आदि से बच कर चलेगा। काली मिर्च या पीपल में नूहे का विष्टा मिलाने वाले क्या अपनी यात्मा को धोखा नहीं देते ? अाज भारतवर्ष में मिलावट का बाजार गर्म है। घी में बनानि तेल, दूध में पानी, दही में स्याही सोख, आटे में भाटे के नूरे का मिलाना तो सामान्य बात हो गई है । असली दवाओं में भी नकली वस्तुएं मिलाई जाने लगी हैं । विना मिलावट के श द्ध रूप में किसी वस्तु का मिलना कठिन हो गया है। इस प्रकार यह देश अप्रामाणिकता और अनैतिकता की ओर बड़े वेग के साथ अग्रसर हो रहा है । विवेकशील दूरदर्शी जनों के लिए यह स्थिति चिन्तनीय है । ऐसे अवसर पर धर्म के प्रति अनुराग रखने वालों को और धर्म की प्रतिष्ठा एवं महिमा को कायम रखने और बढ़ाने की रुचि रखने वालों को आगे आना चाहिए। उन्हें धर्म पूर्वक व्यवहार करके दिखाना चाहिए कि प्रामाणिकता के साथ व्यापार करने वाले कभी घाटा नहीं उठाते । घाटे के भय से अधर्म और अनीति करने वालों को मैं विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि धर्म किसी भी स्थिति में हानिकारक नहीं होता । अतएव भय को त्यागकर, धर्म पर श्रद्धा रख कर प्रामाणिकता को अपनायो । ऐसा करने से प्रात्मा कलुपित होने से बचेगी और प्रामाणिकता का सिक्का जम जाने पर अप्रामाणिक व्यापारियों की अपेक्षा व्यापार में भी अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकेगा। जिन्हें उत्तम धर्म श्रवण करने का सुअवसर मिला है, उन्हें दूसरों की देखादेखी पाप के पथ पर नहीं चलना चाहिए । उनके हृदय में दुर्वलता, कुशंका और कल्पित भीति नहीं होनी चाहिए। ऐसा सच्चा धर्मात्मा अपने उदाहरण से सैकड़ों अप्रामाणिकों को प्रामाणिक बना सकता है और धर्म की प्रतिष्ठाचार में चांद लगा सकता है।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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