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________________ ..:: १६२ j . . तीन व्रतों का प्रतिपादन किया है। परिग्रह परिमाण, भोगोपभोग परिमाण और अनर्थदण्ड त्याग, ये तीन गृहस्थ के व्रत एक दूसरे के पूरक और सहायक हैं । गृहस्थ को चाहिए कि वह अपनी इच्छाओं के अनन्त प्रसारं को रोक दे और उन्हें सीमित कर ले। ऐसा करने के लिए उसे भोग और उपभोग की सामग्री की मर्यादा करनी होगी। इसके विना इच्छाएं सीमा में नहीं रहेंगी। इन दोनों व्रतों के यथावत् पालन के लिए निरर्थक वस्तुओं के संग्रह से और निरर्थक पापों से बचना भी आवश्यक होगा। भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित इन व्रतों का . आश्रय लिया जाय तो विश्व की अधिकांश समस्याएं बड़े सुन्दर ढंग से और स्थायी रूप से सुलझ सकती हैं। इस विधान में ऊपर से कोई चीज थोपी नहीं जाती वरन् हृदय में परिवर्तन किया जाता है। अतएव यह विधान ठोस और स्थायी है। गवान् महावीर के तत्त्वज्ञान का प्रधान साध्य समभाव है। समभाव की साधना पर उन्होंने बहुत बल दिया है । इस साधना की विशेषता यह है कि इससे व्यक्तिगत जीवन अत्यन्त उच्च, उदार, शान्त और सात्विक बनता है, साथ ही समाज में समता और शान्ति आती है। व्यक्तियों का समूह ही समाज है और व्यक्तियों के जीवन में जब सुधार हो जाता है तो समाज स्वयं सुधर नाता है। . . ... जीवन को बनाने के लिए दुर्वृत्तियों पर अंकुश होना आवश्यक है। साथ ही प्रत्येक को दूसरे का जीवन बनाने में निमित्त भूत बनना चाहिए। जीवन में अनिष्ट और कटु प्रसंग आते हैं और आते रहेंग', यह पर घर का निमित्त है, इसमें वहना नहीं चाहिए। ऐसे अवनर पर संयम शीलता से काम लेना ही उचित है । असंयमशील बनने से अधःपतन होता है। . . . सिंह गुफाबासी मुनि संयम की परिधि से बाहर निकले तो उनकी साधना दूपित हुई। रूपाकोशा ने जव रत्न कम्बल पैर पौंछ कर एक तरफ
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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