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________________ १५२ ... तथ्य यह है कि प्रत्येक मनुष्य में शक्ति का अक्षय भंडार भरा है और । वह शक्ति छलक-छलक कर बाहर आकर प्रकट होती है। किन्तु मनुष्य के जैसे संस्कार होते हैं, जैसे विचार होते हैं, उसी प्रकार के कार्यों में वह शक्ति लगती है । कुसंस्कारी और मलीन विचारों वाले मनुष्य की शक्ति गलत कामों में खर्च होती है । वही व्यक्ति जब सन्मार्ग पर आ जाता है, उसके विचार विशुद्ध हो जाते हैं तो सही काम में उसकी शक्ति का सदुपयोग होने लगता है। भगवान् महावीर ने फर्माया है जे कम्मे सूरा, ते धम्मे सूरा। जो कर्म करने में शूरवीर होते हैं, वे धर्म करने में भी शूरवीर . होते है। जिसमें साहस नहीं, पुरुषार्थ नहीं, लगन और स्फूत्ति नहीं और संकटों से जूझ कर, आग से खेल कर, प्राणों को हथेली में लेकर अपने अभीष्ट को प्राप्त करने की क्षमता नहीं, जो बुझा हुआ है, वह किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। जिस तलवार की धार तीखी है वह अपना काम करेगी ही, चाहे उससे अात्मवध किया जाय अथवा आत्मरक्षा की जाय । इसी प्रकार जो पुरुष वीर हैं वह कर्म के मार्ग में अवतीर्ण होगा तो वहां महान् कर्म करेगा और धर्म के मार्ग में आएगा तो वहां भी उल्लेखनीय कार्य किये बिना नहीं रहेगा। रूपाकोशा ने समझ लिया कि मुनि में लगन है, साहस है, पराक्रमशीलता है, जीवट है। इन्हें सिर्फ सही दिशा में मोड़ने की आवश्यकता है। जिस समय इनकी प्रवृत्ति सही मार्ग पर हो जाएगी, उसी समय ये साधना में भी कमाल कर दिखलाएंगे। रूपकोशा ने मुनि को ठीक रास्ते पर लाने की योजना गढ़ ली परन्तु मुख से कुछ नहीं कहा । उसने कम्बल देख कर उसकी अत्यन्त सराहना की। मुनि अपने को कृतार्थ समझने लगे और अपनी सफलता पर गर्व अनुभव करने लगे।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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