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________________ गह रूपी स्वरूप-शय्या में रमण न करके विषय-कषाय की राख में लोटता है, . वह महिमा का पात्र नहीं होता, प्रशंसनीय नहीं गिना जाता। मोहान्ध मानव मोह की तीव्रता के कारण अश्व का भाव भुला कर लम्बकर्ण (गर्दभ) के भाव में आ जाता है। ऐसा मोहान्ध पुरुप सम्यग्ज्ञान के सर्च लाइट से या संत्संगति से ही सुधर सकता है। आत्मानन्द के लोकोत्तर सुधारस का पान करने वाले सिंहगुफावासी मुनि ने लोकेषण के चक्कर में पड़ कर अपनी महान् साधना को बर्बाद कर दिया । वे कम्बल ले कर और पाटलीपुत्र पहुंच कर अपनी सफलता पर प्रसन्न हो रहे हैं । जातीय स्वभाव के कारण गधा राख में लोट-पोट होता है । विषय की ओर हीन प्रवृत्ति होने से मानव की भी ऐसी ही स्थिति हो जाती है । वह भी अपने पतन में आनन्द मानता है । पाटलीपुत्र में मुनि की प्रतीक्षा की जा रही थी। जब वे नगर में पहुंचे तो रूपाकोशा ने प्रश्न किया-रत्न कम्बल कहां है ? - मुनि ने बांस की लाठी में से रत्नकम्बल निकाला जैसे म्यान में से तलवार निकाली जाती है। रूपाकोशा ने मन ही मन विचार किया-मुनि है शूरवीर, सिर्फ मोड़ की आवश्यकता है । जिस मनुष्य में अपने ध्येय को पूर्ण करने की लगन होती है, साहस होता है, उसका मोड़ बदल देना ही पर्याप्त है। उसके पीछे लकड़ी लेकर हर समय चलने की आवश्यकता नहीं होती। लगन वाले व्यक्ति को अगर अच्छे मार्ग पर लगा दिया जाए तो वह अवश्य ही सराहनीय सफलता प्राप्त कर लेता है । इसके विपरीत जिसमें लगन का सर्वथा अभाव है, जो कर्तृ त्वशक्ति से हीन हो वह साधना के मार्ग को पार नहीं कर सकता। उसे किसी भी महान कार्य में सफलता नहीं मिलती। . धर्ममार्ग, अध्यात्ममार्ग या साधनामार्ग में अकर्मण्य व्यक्ति आ जाय. तो क्या करेगा ? पकड़ मजबूत हो और चलन अच्छा हो तो मनुष्य सब कुछ कर सकता है। . IndMARA
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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