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________________ १२२ जानवरों के बीच से मार्ग तय करना पड़ता है । मुनि ने बाहर का भय जीत लिया है और पाप के भय को पीठ पीछे कर दिया है । वे यह भी भूल गए हैं कि लौटते समय वर्षाकाल प्रारम्भ हो जाएगा और विहार करना निषिद्ध होगा, तब क्या होगा? मुनि अडोल भाव से पहाड़ों और वनों को पार करते हुए नेपाल देश में जा पहुंचे। फिर राजधानी में भी पहुंच गए। उन्हें खाने-पीने की सुधि नहीं थी, एक मात्र रत्न कंबल प्राप्त करने की उमंग थी। उन्हें बतलाया गया था कि नेपाल-नरेश रत्न कंबल वितरण करते हैं। उन्हें खयाल ही नहीं आया कि जिसके शरीर पर साधारण वस्त्र का भी ठिकाना नहीं वह किस विरते पर रत्न जटित कंबल की चाह करता है ! यह निमित्त ( रूपाकोशा ) वास्तव में चक्कर में डालने वाला नहीं, उबारने वाला है। मुनि इस बात से प्रसन्न है कि वह सफलता के द्वार तक आ पहुँचा है। वह नहीं सोच सकता कि उस रत्न कंबल का क्या होगा? बन्धुओ, यह साधक की हीयमान स्थिति है । इसे समझ कर हमें अपनी साधना में सजग रहना है। छल-कपट, माया-मोह, फरेब किसी समय भी अपना सिर ऊंचा उठा सकते हैं। यदि असावधान हुए तो नीचे गिरना संभव हैं। अतएव सावधान होकर ज्ञान बल लेकर चलना है, पाप से डरना है, भगवान् से डरना है । यह लक्ष्य कभी मंद न पड़े। यदि पाप से भय है, अधःपतन से भय है तो शास्त्र या धर्म की शिक्षा काम आएगी। पाप का भय हो तो साधक कहीं भी रहे, जीवन निर्मलता के मार्ग में अग्रसर ही होता जाएगा और लौकिक तया पारलौकिक कल्याण होगा।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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