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________________ ..... . [ १२१ है। मगर पूरी कसौटी किए बिना वह मानने वाली नहीं। मुनि को स्थिर करने का उसने निश्चय कर लिया था। अतएव उसने कहा- आप निडर और आत्मजयी वीर हैं, किन्तु वर्षा प्रारम्भ होने पर मार्ग में कीचड़ ही कीचड़ हो जाएगा। चोरों और हिंसक पशुओं का डर रहेगा। अतएव रत्नकंबल पहले ही ले आइए। रूपाकोशा का आग्रह मुनि को प्रीतिकर. नहीं हुआ। उसके मन में निराशा का भाव उदित हुआ और शीघ्र ही विलीन भी हो गया। दूसरा कोई ___ मार्ग न देख मुनि रत्नकंबल लाने के लिए चल पड़े। .. - राग के वशीभूत होकर मनुष्य क्या नहीं करता ? राग उस के विवेक को पाच्छादित करके उचित-अनुचित सभी कुछ करवा लेता है। वह प्राण हथेली में लेकर अतिसाहस का कोई भी काम कर सकता है । . ___मुनि रूपाकोशा के भवन में ठहरे थे। उनकी आत्मा इतनी प्रबल नहीं थी कि वह उस वातावरण पर हावी हो जाती, अपनी पवित्रता और : सात्विकता से उसे परिवर्तित कर देती, जहर को अमृत के रूप में परिणत कर देती। परिणाम यह हुआ कि उस वातावरण से उनकी आत्मा प्रभावित हो गई। जब आत्मा में निर्बलता होती है तो आहार, विहार, स्थान और वातावरण आदि का प्रभाव उस पर पड़े बिना नहीं रहता। अतएव साधक को इन संब. का ध्यान रखना चाहिए और इनकी शुद्धि को अावश्यक समझना चाहिये। . उक्ति है-'संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति' अर्थात् मनुष्यों में दोषों और · गुणों की उत्पत्ति संसर्ग से होती है । यदि उत्तम विचार वाले का संसर्ग हो तो: सत्कर्मों की प्रेरणा मिलती है । समान या उच्च बुद्धि वाले की संगति हो तो... वह मार्ग से विचलित होने पर वचा लेगा। इसके विपरीत यदि दुष्ट साथी मिल गए तो फिसलते को और एक धक्का देंगे। तो रूपाकोशा की प्रेरणा से मुनि रत्नकंबल लाने को उद्यत हो गए। पहाड़ी भूमि की दुर्गमता निराली होती है। वहां घुमावदार ऊँचे-नीचे ऊबड़खाबड़ रास्ते से जाना पड़ता है, झाड़ियों से उलझना पड़ता है और जंगली
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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