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________________ - 38 . आध्यात्मिक आलोक, . योग्य गुरु के होते हुए भी यदि कोई शिष्य लाभ न ले, पुरुषार्थ न करे तो उसका दुर्भाग्य ही समझना चाहिए। जैसे कि - किसी पण्डितजी के एक दुलारा पुत्र था, पण्डितजी अपने इस लाडले पुत्र को रजाई में पड़े-पड़े पढ़ाया करते थे। एक बार उनके घर में एक दूसरे विद्वान पधारे । शास्त्रीजी ने नवागंतुक विद्वान से अपने पुत्र की परीक्षा लेने का आग्रह किया । पण्डितजी ने उस बालक की योग्यता के अनुसार दो चार प्रश्न पूछे किन्तु उसने कोई उत्तर नहीं दिया । एक दर्शक जो बराबर उस बालक को पढ़ते देखता था, बोला कि पण्डितजी इसको रजाई में लेटे लेटे पढ़ाते हैं । अतः आप भी इसको रजाई के भीतर सुलाकर प्रश्न कीजिए और वैसा करने पर वास्तव में बालक ने सभी प्रश्नों का उत्तर दे दिया । यह गुदड़ी का ज्ञान था । दुनिया में हर जगह रजाई कहाँ से मिल सकती है ? यह अभ्यास का प्रशस्त तरीका नहीं है । इस प्रकार विद्वान पिता को पाकर भी बालक अच्छा नहीं बन सका । यद्यपि निमित्त अच्छा था, पर विधिपूर्वक पुरुषार्थ नहीं किया गया । योग्यता होते हुए भी पुरुषार्थ की आग को ढक कर रखने से ज्ञान रूपी प्रकाश नहीं मिलता। आनन्द श्रावक ने भगवान् महावीर स्वामी का निमित्त पाकर योग्य पुरुषार्थ किया । उसने प्रभु के मुख से जो कुछ भी सुना उसको शुद्ध मन से ग्रहण कर जीवन में उतारने का यत्ल किया, फलतः उसका जीवन सफल बन गया । ___ यदि वीतराग की वाणी को सुनकर कोई उसे ग्रहण न करे तो उसकी आत्मा में बल नहीं आवेगा, उसमें बुराइयों से जूझने की शक्ति नहीं होगी । ऐसी स्थिति में समझ लेना चाहिए कि श्रोता में कुछ मानसिक रोग अवशेष हैं । सुनी हुई बात को मनन करने से आत्मिक बल बढ़ता है । मनन के बिना सुना हुआ ज्ञान स्थिर नहीं होता। ज्ञान सुनने को यदि खाना कहें तो मनन करना उसको पचाना है । मनुष्य कितना ही मूल्यवान एवं उत्तम भोजन करे पर यदि उसका पाचन नहीं करे तो वह बिना पचा अन्न, अनेक प्रकार की व्याधियों का कारण बन जाता है । यदि गाय, भैंस खाकर जुगाली न करे तो वह अच्छा दूध नहीं देगी। इस प्रकार सतगुरु की संगति से जीवन में परिवर्तन लाना हो तो श्रवण के पश्चात् मनन करना होगा। क्योंकि रुचि ही सतवृत्ति का प्रमुख कारण है, जैसे भूखा व्यक्ति भोजन की ओर अभिरुचि और प्रवृत्ति रखता है, वैसे साधक की रुचि साधना की ओर रहती है । वह इस पथ पर सहज भाव से प्रसन्नता पूर्वक बढ़ता और क्रमशः बढ़ता ही जाता है, जब तक कि मंजिल पर नहीं पहुँच जाता ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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