SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 361 आध्यात्मिक आलोक न्याय नीति का तकाजा है कि जो सबल है वह निर्वल का सहायक बने, शोषणकर्ता नहीं । इसी आधार पर शान्ति टिक सकती है, अन्यथा नहीं । जगत् में अनेक प्रकार के प्राणी हैं। उनमें त्रस अर्थात् जंगम् भी हैं और स्थावर भी । भगवान महावीर ने उन सबके प्रति मैत्री और करुणाभाव धारण करने का उपदेश दिया है। जैसे सन्तति प्रेमी पिता छोटे, बड़े, होशियार, मन्दबुद्धि आदि सभी बच्चों को प्यार करता है, उसी प्रकार विवेकशील साधक के लिए सभी जीव-जन्तु संरक्षणीय हैं । यह सत्य है कि गृहस्थ विविध प्रकार की गार्हस्थिक आवश्यकताओं से बंधा हुआ है, फिर भी वह सम्पूर्ण नहीं तो आंशिक रूप में हिंसा से विरत हो ही सकता है । निरर्थक हिंसा का त्याग कर देने पर भी उसके किसी कार्य में बाधा उपस्थित नहीं होती और बहुत से पाप से बचाव हो सकता है। धीरे-धीरे वह पूर्ण त्याग के स्थान पर भी पहुँच सकता है । किन्तु जब तक यह स्थिति नहीं आती है, उसे मन्जिल तय करना है । चल और अचल सभी जीवों की रक्षा का लक्ष्य उसके सामने रहना चाहिए । अपूर्ण त्याग से पूर्ण त्याग तक पहुँचना उसका ध्येय होता है। वह कौटुम्विक व्यवहार में भी कर्तव्य-अकर्तव्य का विवेक करके प्रवृत्ति करता है और अपने व्रतों के पालन का ध्यान रखता है। उसकी आजीविका किस प्रकार की होती है या होनी चाहिए इसका विवेचन करते हुए तीन कर्मादानों का निरूपण किया जा चुका है। इंगालकम्मे, वणकम्मे, और साडीकम्मे के सम्बन्ध में प्रकाश डाला गया है , खर-कर्म होने के कारण श्रावक के लिए ये निषिद्ध हैं। (४) भाडीकम्मे ( भाटी कर्म )-यह चौथा कर्मादान है । बैल, हाथी, ऊंट, घोड़ा, गधा, खच्चर, आदि जानवरों के द्वारा भाड़ा कमाना या आजीविका निर्वाह के लिए इन्हें भाड़े पर चलाना भाडीकम्मे कर्मादान कहलाता है । जब इन पशुओं के द्वारा भाड़ा कमाने का लक्ष्य होता है तो इनके संरक्षण और सुख-सुविधा की बात गौण हो जाती है । भाड़े का लोभी स्टेशन से बस्ती तक चलने वाले तागे घोड़े को दूर-दूर ग्रामों तक ले जाने को तैयार हो जाता है और शीघ्र से शीघ्र मंजिल तय करने के लिए उसे कोड़ों से पीटता और भागने की शक्ति न होने पर भी भागने को बाध्य करता है । जिसके पैर जवाब दे चुके हों, जिसको अपने शरीर का भार वहन करना भी कठिन हो रहा हो, जो चलते चलते हांफ गया हो, ऐसे जानवर पर भार लाद कर जब मार-मार कर चलाया और दौड़ाया जाता है, तब उसको कितनी व्यथा होती होगी? ऐसा व्यवहार अत्यन्त क्रूरतापूर्ण है किन्तु भाड़े की आजीविका करने वाला शायद ही इससे बच सकता है । आते हुए पैसे को ठोकर मार कर जानवर की सुख-सविधा का विचार करने वाले विरले ही मिलेंगे । सामान्य
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy