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________________ 362 आध्यात्मिक आलोक व्यक्ति, जिसने सम्यग्दृष्टि प्राप्त नहीं की है, ऐसा कार्य करे तो समझ में आ सकता है, क्योंकि उसमें करुणाभाव का अभाव होता है मगर सम्यग्दृष्टि श्रावक ऐसा नहीं करेगा । अगर करता है. तो उसका व्रत सुरक्षित नहीं रह सकता । अतएव व्रती श्रावक को भाड़े की इस प्रकार की आजीविका नहीं करनी चाहिए। ___ जीवन-निर्वाह के लिए बड़े पाप करने की क्या आवश्यकता है ? जिसने परिग्रह का परिमाण कर लिया है, और अपनी आवश्यकताओं को सीमित कर लिया है, वह अल्पारंभ से ही अपना काम चला सकता है । उसके जीवन-व्यवहार के लिए घोर पाप की आवश्यकता ही नहीं होती। ___ आज बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी आदि की संख्या कम हो गई है । यंत्रों द्वारा चलने वाली गाड़ियों ने उनका स्थान ग्रहण कर लिया है। कुछ लोगों की ऐसी दृष्टि है कि मोटर में चलने से पाप नहीं होता । तागे की अपेक्षा मोटर की सवारी को लोग अच्छा समझते. हैं। उसमें धन की और समय की बचत समझते हैं । शान भी उसमें मानते हैं। मोटर में बैठ कर बाजार से निकलने वाला व्यक्ति पैदल चलने वालों को अवज्ञा भरी दृष्टि से देखता है और अपने को उनसे ऊंचा समझता है । इससे उसके मान रूपी कषाय को पुष्टि मिलती है। वह अहंकार में चूर हो जाता है। महावीर स्वामी के भक्त प्रत्येक कार्य के औचित्य-अनौचित्य को हिंसा-अहिंसा की तुला पर तौलते हैं । उनको कसौटी सर्वसाधारण की कसौटी से भिन्न प्रकार की होती है। पुराने लोग छह माह की राह के बदले वर्ष भर की राह चलने को कहते थे, क्योंकि उनका लक्ष्य पशुओं की हिंसा से बचने का रहता था । समय और शक्ति भले अधिक लग जाय किन्तु धार्मिक दृष्टि से हिंसा से बचाव हो, यह उनका आधारभूत विचार होता था । व्रती साधक न स्वयं हिंसा करता है और न ऐसा कोई कार्य करता है जिससे परोक्ष रूप में हिंसा को प्रोत्साहन मिलता हो । बहुत से लोग आज ऐसे मिलेंगे जो स्वयं बड़े-बड़े यंत्रों को भले न चलाते हों किन्तु उन यंत्रों वाले कारखानों में निर्मित वस्तुओं का उपयोग करते हैं । यह उन कारखानों को प्रोत्साहन देना है । आज हिंसा-अहिंसा का विचार नहीं किया जाता सिर्फ सस्तापन और सौन्दर्य देखा जाता है । शीघ्रता और सुविधा का ही विचार किया जाता है । परिणाम यह हुआ है कि बैलों और घोड़ों को कोई नहीं पूछता । उनकी संख्या कम होती जा रही है और मोटरों की संख्या बढ़ रही है । मोटर जल्दी दौड़ती है और दौड़ती-दौड़ती थकती नहीं है। इससे जानवरों की उपयोगिता कम हो गई है और जब किसी वस्तु की उपयोगिता कम हो जाती है तो उसकी रक्षा की और ध्यान नहीं दिया जाता। लाभ
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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