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________________ 266 आध्यात्मिक आलोक रूप स्वीकार किया है । राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया लोभ आदि जितनी भी दुर्वृत्तियां हैं, सभी हिंसा के अन्तर्गत हैं । कभी इनसे किसी का घात न भी होता हो तो भी आत्मिक स्वरूप का विघात तो होता ही है और इस अर्थ में यह स्वहिंसा है। ज्ञानीजन इसलिए ऐसी स्वहिंसा से भी बचते हैं। उपासकदशांग सूत्र के चालू प्रकरण में मैथुन आदि के विषय में भगवान् महावीर स्वामी आनन्द आदि को सम्बोधित करके बता रहे हैं कि कायिक मैथुन स्थूल मैथुन है । स्थूल मैथुन के त्यागी को पांच बातों से बचना चाहिए । स्वदार-सन्तोष और स्वपति सन्तोष के पांच अतिचार जानने योग्य हैं किन्तु आचरण करने योग्य नहीं हैं । वे इस प्रकार हैं (१) इत्वरिका परिग्रहीतागमन-परिग्रहीता ( विवाहिता ) के साथ गमन करना साधारणतया दोष नहीं माना जाता, लौकिक दृष्टि से अनैतिक कृत्य भी नहीं गिना जाता, किन्तु अल्प अवस्था को पत्नी से गमन करना अतिचार है-ब्रह्मचर्य व्रत सम्बन्धी दोष है, क्योंकि ऐसा करना उसके प्रति अन्याय है। रखैल स्त्री के साथ गमन करना भी दूषण है, क्योंकि वह उसकी वास्तविक स्वकीया पत्नी नहीं है । जब तक रखैल स्त्री से कायिक सम्बन्ध न हो तब तक अतिचार समझना चाहिए और कायिक सम्बन्ध होने पर अनाचार हो जाता है, अर्थात् काया से सम्बन्ध करने पर स्वदार सन्तोष व्रत पूरी तरह सण्डित हो जाता है । (२) अपरिग्रहीतागमन-अविवाहिता - कुमारी अथवा वेश्या को पराई स्त्री न समझ कर उसके साथ गमन करना भी अतिचार है । वास्तव में वे सब स्त्रियां परकीया हो हैं । जो स्वकीया (विवाहिता ) नहीं हैं, उनके साथ संभोग करने से व्रतभंग नहीं होगा, यह धारणा भ्रमपूर्ण है । अतएवं स्वकीय पत्नी के अतिरिक्त सभी स्त्रियों को परस्त्री समझना चाहिए। (३) अनंग क्रीड़ा-कामभोग के प्राकृतिक अंगों के अतिरिक्त जो अंग हैं वे यहां अनंग कहलाते हैं । उनके द्वारा काम चेष्टा करना ब्रह्मचर्य द्रत का दूषण है। जब कामुकवृत्ति तीव्रता के साथ उत्पन्न होती है तो मनुष्य का विवेक विलुप्त हो जाता है । वह उचित-अनुचित के विचार को तिलांजलि दे देता है और गर्हित से गर्हित कृत्य भी कर डालता है । अतएव इस प्रकार की उत्तेजना के कारणों से सदगृहस्थ को दूर ही रहना चाहिए। . . श्रावक भी मोद.मार्ग का पधिक है । वह अपने जीवन का प्रधान ध्येय सिद्धि ( मुक्त ) प्राप्त करना ही मानता है और तदनुसार 'यथाशक्ति व्यवहार' भी
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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