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________________ आध्यात्मिक आलोक 265 के बदले में भी, यहां तक कि त्रैलोक्य की प्रभुता के बदले में भी, कोई अपने प्राण देने को तैयार नहीं होता । यदि सर्वतोभावेन आत्मस्वरूप की ओर गति करने का लक्ष्य है तथा निज गुणों की रक्षा करनी है तो सभी प्रकार की हिंसा से बचना चाहिए। जैसे मनुष्य की हिंसा को गर्हित समझा जाता है, उसी प्रकार मनुष्येतर प्राण-धारियों की हिंसा को भी त्याज्य समझना चाहिए । आज हमारे देश में, राजनीतिक क्षेत्रों में भी अहिंसा की चर्चा होती है । भारतीय शासन भी अहिंसा की दुहाई देता है । मगर समझ में नहीं आता कि वह कैसी अहिंसा है ! जो सरकार मांस, मछली और अंडे खाने का प्रचार करती है, तो कहना चाहिए वह सही रूप में अहिंसा को समझती ही नहीं । राजनीतिज्ञों की अहिंसा संभवतः मानव प्राणी तक ही सीमित है । मानवेतर प्राणी अपनी रक्षा के लिए पुकार नहीं कर सकते, संगठित होकर आन्दोलन नहीं कर सकते, असहयोग और सत्याग्रह करने का सामर्थ्य उनमें नहीं है, वे शासन को हिला नहीं सकते और उनसे किसी को 'वोट' लेने का स्वार्थ नहीं है, क्या इसी कारण वे अहिंसा और करुणा की परिधि से बाहर हैं ? यदि यह सत्य है तो स्वार्थ एवं भव पर आधारित अहिंसा सच्ची अहिंसा नहीं है। वह अहिंसा, धर्म और नीति नहीं है-मात्र पॉलिसी' (छल-कपट है) । मगर याद रखना चाहिए कि जब तक प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा और करुणा का दृष्टिकोण नहीं अपनाया जाएगा तब तक मानव-मानव के प्रति भी अहिंसा का पालन नहीं कर सकेगा। पशुओं और पक्षियों की हिंसा करने वाले में हिंसा के प्रति झिझक नहीं रहती तो कभी भी वह मनुष्यों की हिंसा भी कर सकता है । राजनीतिक क्षेत्र में अहिंसा सम्बन्धी आन्दोलन की अब तक की असफलता का यही मुख्य कारण है । अधूरी अहिंसा की प्रतिष्ठा नहीं की जा सकती । हिंसा के संस्कारों को मनुष्य के मस्तिष्क से तभी दूर किया जा सकता है जब मनुष्य और मनुष्येतर सभी प्राणियों की हिंसा को पाप समझा जाय और उसके उन्मूलन के लिए प्रयत्न किया जाय । ऐसा करने के लिए अहिंसा को धर्म समझना होगा - पॉलिसी # समझने से काम नहीं चलेगा । जैन मनीषियों ने अहिंसा के सम्बन्ध में तलस्पर्शी और अत्यन्त व्यापक चिन्तन किया है । उन्होंने असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और मूर्च्छा को भी हिंसा का ही * | पालिसी = नीति | यह शाब्दिक अर्थ है । पर जन-प्रचलित अर्थ में यहाँ इसका 'छल-प्रपंच' के अर्थ में प्रयोग किया गया है ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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