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________________ आध्यात्मिक आलोक सकते हैं, पर शासन सेवा सब नहीं कर सकते । उसकी महिमा में स्व. पू. माधव मुनि ने कैसा अच्छा कहा है जिन भाषित आगम अनुसार, जिनवर धर्म करें। धारें शिर जिन आज्ञाभार, वो ही जन जैनी कहलाए।। जैन धर्म का प्रचार-प्रसार केवल जैन नाम धराने से नहीं होगा, इसके लिए दो बातें चाहिये । (७) शास्त्रानुसार वीतराग धर्म का प्रसार करना । और (२) स्वयं जिनाज्ञा का पालन करना । फिर आचार्य श्री आगे कहते हैं : उपदेशक-जन कर तैयार। भेजें देश-विदेश मझार ।। जिन देशों और क्षेत्रों में साधुओं का पदार्पण नहीं होता, वहां उपदेशक तैयार कर दया धर्म का जो प्रसार करे, वह प्रभावक श्रावक है । . जहां पै नहीं साधु संयोग उनको दया धर्म दरसावे । स्वाध्यायशील व्यक्ति ज्ञान के बल से स्वयं स्थिर रहते हैं और दूसरों को भी धर्म-मार्ग पर लगाते हैं । ज्ञातासूत्र में सुबुद्धि प्रधान का वर्णन आता है । उसमें स्पष्ट लिखा है कि खाई के गन्दे पानी को लेकर जब राजा को घृणा हुई तो मन्त्री ने वहां जैन नीति से उत्तर दिया और कुछ ही सप्ताहों में उसी जल को शुद्ध कर राजा को पिलाया। मन्त्री के उपदेश से राजा ने समझा कि वास्तव में पुद्गल का स्वभाव क्या है ? अच्छा देख मनुष्य प्रशंसा करता है और बुरा देखकर घृणा करता है । वास्तव में पुद्गल परिवर्तनशील है, इसमें अच्छे का बुरा और बुरे का अच्छा होता रहता है । सबद्धि स्वाध्यायशील नहीं होता तो राजा को नहीं सुधार सकता था। यह श्रावक का धर्म है। साधु सब बात नहीं कह सकते और न सब जगह पहुँच ही सकते हैं। अतः श्रावक-संघ को अपना कर्तव्य समझ कर स्वाध्याय को बढ़ावा देना चाहिए।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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