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________________ 100 आध्यात्मिक आलोक एक मदिरा का ठेकेदार स्वयं मदिरा नहीं पीते हुए भी उसका व्यापार कर सकता है । उसी प्रकार सिगरेट, बीड़ी, नायलोन के वस्त्र का व्यापारी इन वस्तुओं का व्यवहार किए बिना भी इनका व्यापार व प्रचार कर सकता है। किन्तु धर्म का प्रचार शुद्ध सदाचारी बने बिना संभव नहीं है । जो सत्य, अहिंसा और तप का स्वयं तो आचरण नहीं करे और प्रचार मात्र करे, तो वह अधिक प्रभावशाली नहीं हो सकता । इसके विपरीत, आचरणशील व्यक्ति बिना बोले मौन-आत्मबल से भी धर्म का बड़ा प्रचार कर सकता है । महर्षि अरविन्द का उदाहरण हमारे सामने है । मूक साधकों का दूसरे के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है । आचार तथा त्याग बिना बोले भी हर व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालता है। संत-दर्शन से भी व्यक्ति लाभान्वित होता है | जो इस बात को जानते हैं, उन्हें सन्त दर्शन का लाभ क्यों छोड़ना चाहिये ? बिना स्वाध्याय और आचार के भला काम कैसे चलेगा ? साधु-साध्वियों तथा उपदेशकों के कधे पर चढ़कर कब तक चला जायेगा । यदि संघ-धर्म के रूप में स्वाध्याय को अपना लिया जाय, तो धर्म की एवं अपनी रक्षा हो सकती है। कहा भी है-"धर्मो रक्षति रक्षितः " स्वाध्याय की महिमा गाते हुए किसी ने ठीक ही कहा है : "स्वाध्याय बिना घर सूना है, मन सूना है सद्ज्ञान बिना" सत्संग से अपना ज्ञान भण्डार भरो | स्वाध्याय जनित जानकारी और अनुभव हो तो गृहस्थ साधकगण साधुओं के जीवन को निर्मल बनाने में भी सहायक हो सकते हैं, नहीं तो वे ही अज्ञानवश उन्हें फिसलाने वाले भी होते हैं । रागादिवश पहले तो अकल्प में सहायक होते हैं और फिर वे ही त्यागियों की कटु आलोचना करते हैं। यह अज्ञान, स्वाध्याय नहीं करने का ही फल है। राजा सम्प्रति ने साधुओं की कमी को दूर करने के लिए सैनिकों को साधु बनाकर जगह-जगह भेजा । यह उनका धर्म के प्रति उत्कट अनुराग का उदाहरण है। श्रमणों के तपस्तेज को कायम रखने के लिए प्रचार की आवश्यकता है। केवल प्रस्तावों या महत्वाकांक्षाओं से धर्म का संरक्षण, संवर्धन और उत्थान कैसे हो सकेगा? स्वाध्याय से श्रुत-धर्म पुष्ट होगा और सामायिक से चरित्र-धर्म शुद्ध बनेगा। स्वाध्याय का बल होने से चिन्तन-मनन की शक्ति बढ़ेगी और तूत्तू मैं-मैं की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। तत्व ज्ञान तथा अन्य आध्यात्मिक बातों का आदान-प्रदान भी संघ में स्वाध्याय के द्वारा ही हो सकता है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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