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________________ [ २५ ] रुद्र नामक एक तापस उस नगरी में रहता था, राजा को साधुओं का भक्त हुआ ज्ञात कर मात्सर्यपूर्वक साधुओं को मरवाने के अभिप्राय से उसने साधु का वेष किया और अन्तःपुर में जाकर रानी की विडम्बना की। राजा ने कुपित होकर केवल उसे ही नहीं, सभी साधुओं को पानी में पीला कर मार डाला। एक शक्तिशाली मुनि ने आकर तेजोलेश्या छोडी जिससे सारा नगर जल कर स्मशान हो गया और दण्डकारण्य कहलाने लगा। राजा दण्डकी भव भ्रमण करता हुआ इसी वन में दुर्गन्धित गृद्ध पक्षी हुआ। हमें देखकर इसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया और वन्दन, प्रदिक्षणान्तर धर्म प्रभाव से सुगन्धित शरीर हो गया। गृद्ध पक्षी मास और रात्रिभोजनादि त्याग कर धर्माराधन करने लगा। मुनिराज अन्यत्र चले गये, पक्षी सीता के पास रहने लगा। उसके शरीरपर सुन्दर जटा थी इससे उसका नाम जटायुध हो गया। साधु-दान के प्रभाव से राम के पास मणिरत्नादि की समृद्धि हो गई एवं देवों ने राम को चार घोड़ों सहित रथ दिया। राम, सीता, लक्ष्मण सुखपूर्वक रहने लगे। — दण्डकारण्य में घूमते हुए राम, सीता और लक्ष्मण एक नदी तटवर्ती वनखंड में गए। समृद्ध रत्नखान वाले पर्वत, फल फूलों से लदे वृक्ष और निर्मल नदी जल को देखकर राम ने वहीं निवास करना प्रारम्भ कर दिया। लङ्काधिप रावण कथा प्रसंग उस समय लंकागढ़ में रावण राज्य करता था । लंका के चतुर्दिक समुद्र था। रावण का नाम दशमुख भी कहलाता था, जिसकी उत्पत्ति इस प्रकार है
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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