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________________ [ २६ ] वताच्य पर्वत पर रथनेउर नगर में मेघवाहन विद्याधर राज्य करता था, जिसके इन्द्र से शत्रुता थी। अजितनाथ स्वामी की भक्ति से प्रसन्न होकर राक्षसेन्द्र ने मेघवाहन से कहा कि राक्षसद्वीप में त्रिकूटगिरि पर लंकानगरी है, वहाँ जाकर निरुपद्रव राज्य करो! पातालपुरी, जो दंडगिरि के नीचे है, वह भी मैं तुम्हें देता हूं। मेघवाहन विद्याधर वहीं राज्य करने लगा। राक्षसद्वीपके कारण वे विद्याधर राक्षस कहलाने लगे। उसी के वंश मे रत्नाव का पुत्र रावण हुआ। बचपन में पिता ने उसे दिव्यहार पहनाया, जिसमें नौ मुंह प्रत्तिविम्बित होने से वह दशमुख कहलाने लगा। एकवार अष्टापद पर्वत पर भरत चक्रवर्ती द्वारा वनवाये चैत्यों को उल्लंघन करते दशमुख का विमान रुक गया। उसने ध्यानस्थ बालि मुनि को इसका कारण समझ कर अष्टापद को ऊँचा उठा लिया। चैत्व रक्षा के लिए वालि ऋषि ने पहाड़ को दवा दिया जिससे दशमुख ने रव (रुदन) किया, तो वह रावण नाम से प्रसिद्ध हो गया। रावण ने अपनी बहिन चन्द्रनखा खरदूषण को व्याह कर उसे पाताल लंका का राज्य दे दिया। दिव्य खग का पतन और लक्ष्मण का परितापचन्द्रनखा के संव और संबुक्क नामक दो पुत्र थे, संवुक विद्यासाधन के निमित्त दण्डकारण्य में कंचुरवा के तटस्थित वंशजाल में उलटे लटक कर विद्या साधन करता था। उसे बारह वर्ष चार मासं बीत गए, विद्या सिद्ध होने मे तीन दिन अवशिष्ट थे। भवितव्यता वश लक्ष्मण ने वंशजाल में लटकते हुए दिव्य खङ्गको देखा तो उसने ग्रहण कर वंशजाल पर वार किया जिससे संवुक का कुण्डल युक्त मस्तक
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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