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________________ [ २१ ] मुनिराज उपसर्ग तथा वंशस्थल नगर कथा प्रसंग जब ये लोग वंशस्थल नगर पहुंचे तो राजा प्रजा सबको भयभीत हो भागते देखा और पूछने पर पर्वत पर महाभय ज्ञात कर महासाहसी राम, लक्ष्मण और सीता के साथ पहाड़ पर गये। उन्होंने देखा एक मुनिराज ध्यान में निश्चल खड़े है, जिन्हें सांप, अजगर आदि ने चतुर्दिग घेर रखा है। राम धनुषान द्वारा उन्हें हटा कर मुनिराज के आगे गीत, वाद्य, नृत्यादि द्वारा भक्ति करने लगे। पूर्वभव के वैर को स्मरण करके भूत पिशाचों ने नाना उपसर्गों द्वारा भयानक दृश्य उपस्थित कर दिया। राम लक्ष्मण ने उन्हें भगा कर निरुपद्रव वातावरण कर दिया। मुनिराज को उसो रात्रि में शुक्लध्यान ध्याते हुए केवलज्ञान प्रकट हो गया। देवों ने केवली भगवान की महिमा की, राम के पूछने पर मुनिराज ने उपद्रव का कारण इस प्रकार बतलाया। अमृतसर के राजा विजयपर्वत के उपभोगा नामक रानी थी। जिससे वसुभूति नामक विप्र लुब्ध रहता था। राजा ने एक बार दूत के साथ वसुभूति को विदेश भेजा। वसुभूति ने मार्ग में दूत को मार दिया और वापस आकर राजा से कहा-दत ने कहा कि मैं अकेला जाऊँगा, अतः मैं लौट आया हूं। ब्राह्मण रानी के साथ लिप्त था ही, उसने एक दिन रानी के आगे प्रस्ताव रखा कि तुम्हारे उदित, मुदित दोनों पुत्र अपने सुख मे अन्तरायभूत है अतः इन्हें मार्ग लगा दो। ब्राह्मणी ने राजकुमारी को भेद की बात बतला दी जिससे राजकुमारों ने ब्राह्मण को तलवार के घाट उतार दिया । संसार के स्वरूप से विरक्त राजकुमारों ने मतिवद्धन मुनि के पास दीक्षा ले ली। ब्राह्मण मर कर
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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