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________________ । २० ] मूर्ख ! अहंकार त्याग कर भरत की आज्ञा स्वीकार करो। राजा ने कुपित होकर खड्ग निकाली तो नर्तकी ने राजा की चोटी पकड़ ली। लक्ष्मण अतिवीर्य को राम के पास ले गया, सीता ने उसे छुड़ाया। अतिवीर्य ने विरक्त होकर राम की आज्ञा से पुत्र को राज्य देकर दीक्षा ले ली। पुत्र विजयरथ भरत का आज्ञाकारी हो गया। जितपना के लिए लक्ष्मण का शक्ति-सन्तुलन राम लक्ष्मण कुछ दिन विजयपुर जाफर रहे फिर वनमाला को वहीं छोड़ कर खेमंजलि नगर गये। रामाज्ञा से लक्ष्मण नगर में गया तो उसने सुना कि शत्रुदमन राजा ने यह प्रतिज्ञा कर रखी है जो मेरा शक्ति प्रहार सहन करेगा, उसे अपनी पुत्री दूंगा। लक्ष्मण ने राजसभा मे जाकर भरत के दूत के रूप मे अपना परिचय देते हुए राजा को पंचशक्ति प्रहार करने को कहा। जितपद्मा ने लक्ष्मण पर मुग्ध होकर शक्ति प्रहार के प्रपंच मे न पड़ने की प्रार्थना की। लक्ष्मण ने उसे निश्चित रहने का संकेत कर दिया। राजा ने क्रमशः पंच शक्ति छोड़ी जिसे लक्ष्मण ने दोनों हाथ, दोनों काख और दाँतों द्वारा ग्रहण कर ली। देवो ने पुष्पवृष्टि की। लक्ष्मण ने जब कहा-राजा! अव तुम भी मेरा एक प्रहार सहो! तो राजा कांपने लग, जितपद्मा की प्रार्थना से लक्ष्मण ने उसे छोड़ दिया। राजा के पुत्री ग्रहण करने की प्रार्थना पर लक्ष्मण ने कहा-मेरे ज्येष्ठ भ्राता जाने। राजा रामचन्द्र को प्रार्थना कर नगर में लाया और लक्ष्मण के साथ जितपद्मा का व्याह कर दिया। कुछ दिन वहां रह कर राम लक्ष्मण ने फिर वन की राह ली।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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