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________________ सीताराम चरित्र सार पूर्वकथा प्रसंग ___एक बार गणधर गौतम राजगृह नगर में समौसरे। महाराजा श्रेणिकादि परिषद् के समक्ष उन्होंने अठारह पाप स्थानकों का परिहार करने का उपदेश देते हुए कहा कि साध्यादि को मिथ्या कलंक देने से सीता की भांति प्रबल दुःख जाल में पड़ना होता है। श्रेणिक के पूछने पर गौतम स्वामी ने सीता के पूर्वभव से लगा कर उनका सम्पूर्ण जीवन-वृत्त वतलाया जो यहां संक्षिप्त कहा जाता है। वेगवती और महात्मा सुदर्शन भरतक्षेत्र में मृणालकुंड नगर में श्रीभूति पुरोहित की पुत्री वेगवती निवास करती थी। एक वार वहाँ सुदर्शन नामक उच्चकोटि के मुनिराज के पधारने पर सारा नगर वन्दनार्थ गया और उनके निर्मल संयम और उपदेशों की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी। मिथ्या दृष्टिवश वेगवती को साधु की प्रशंसा असह्य हुई और वह लोगों की दृष्टि मे मुनिराज को गिराने के लिए मिथ्या प्रचार करने लगी कि ये साधु पाखण्डी है। मैंने इन्हें स्त्री के साथ व्रत भंग करते देखा है। वेगवती के प्रचार से साधु की सर्वत्र निन्दा होने लगी। मुनिराज के कानों मे जव यह प्रबाद पहुंचा तो उन्हें मिथ्या कलंक और धर्म की निन्दा का बड़ा खेद हुआ। उन्होंने जब तक यह कलंक न उतरे, अन्न जल का परित्याग कर दिया। शासनदेवी के प्रभाव से वेगवती का मुंह फूल गया और वह अत्यन्त दुःखी होकर अपने किये का फल पाने लगी। उसके मन मे पश्चाताप हुआ और अपना दुष्कृत्य स्वीकार करते हुए
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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