________________
( २५० ) पूरव भव सुणिज्यो एम, राग द्वेप छइ पाडुया । विढवानो लेजो नेम वे ॥ पू० आ० ।। पुत्र थया वे तेहनइ, धनदत्त अनइ वसुदत्त । तेथि वसई विवहारियो, वलि बीजोसागरदत्त वे ॥२॥पू० रतनामा तसु भारिजा, कन्यारूपड करि रंभ। गुणवती नामइ गुणभरी, देखता थायइ अचंभ वे ||३|| पू० बाप दीधी वसुदत्त नइ, गुणवती कन्या एह । द्रव्यतणइ लोभइ करी, माता वलि दीधी तेहवे ॥४॥ पू० तिण नगरी विवहारियड, वल अन्य हुँतो श्रीकंत । ब्राह्मण मित्र जइ कह्यो, वसुदत्त नइ विरतंत वे ॥शा पू० बात सुणी नइ कोपियउ, निजकर लीधर करवाल । प्रहार दियउ श्रीकंत नइ, वसुदत्तइ जइ ततकाल वे ॥६।। पू० श्रीकंतइ पणि ले छुरी, मरतइ मारि तसु पेटि । इम बेऊ विढता थकां, मारी ता मुया नेटि, बे ॥७॥ पू० बे वनमइ गज ऊपना, देखी नई जाग्यो कोप। एकएकनई मारियो, तिहापणि थयो बिहुंनोलोप वे ॥८॥ पू० महिप वृषभ वानर थया, द्वीपी मृग अनुक्रमि जेह । माहोमाहि विढीमुंया, सहु क्रोधतणा फल तेह वे 18|| पू० इम जलचर थलचर भवे, भमते दीठा बहु दुखु । वयर विरोध महाबुरा, किहाथी पामीजइ सुखु वे ॥१०॥ पू० हिव धनदत्त भाई हुँतो, ते बांधव तणई वियोग । अति दुखियो भमतो थको, सहतो संतापनई सोग वे ॥११॥ पू०