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________________ ( २२० ) मदनाकुस पाणिग्रहण, एकठो करण निमित्त । मुंक्यो दूत उतावलो, पृथिवीपुर संपत्त ।।१७|| पृथु राजा तिहां राजीयो, कनकमाला तसु धूय । वनजंघ मागइ नृपति, अंकुस नई कहइ दूय' ॥१८॥ वचन सुणी राज्या कुप्यो, कहइ साभलि रे दूत। कुल अगन्यात नई कुण दियइ, निज कन्या रजपूत ।।१।। तुम नई इम कहतइ थकइं, जीभ छेदण नो दंड। पणि अवध्य कह्या दूत नर, एहवी नीत अखंड ॥२०॥ दोठइ मारगि जा परो, कहि सामी नई जाइ। पृथु पुत्री आप३ नहीं, करि तुझ थी जे थाय ।।२१।। वनजंघ राजा भणी, कह्यो दूत विरतांत । लागउ तेहना देस नइ , लूटण भणी अश्रांत ॥२२॥ सुणी देस निज भाजतो, मुक्यो वजूरथ राय । वजूजघ ते वांधीयो, बिढतो साम्हो थाय ॥२३॥ सर्वगाथा ॥१८॥ ढाल चउपई नी पृथु राजा सामग्री मेलि, रण निमित्त उठ्यो तिण वेलि। वनजंघ सुत तेडावीया, ते पणि तुरत उठी धावीया || रण निमित्त वजडावी भेरि, सुभट मिल्या सब चिहुं दिसि घेरि। रवण अंकुस पणि चाल्या साथि, सूरवीर नहीं किण ही रइ हाथि ||२|| १-देय । २-~वाय
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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