SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (,२०२ ) कहइ कामिणी वलि काई । स० ।। आणीतउ मानी कां रांम सोता भणी रे लो। स०॥ कहइ वलि वीजी कांइ ।। स०।। सीता सुं पूरवली प्रीति हुंती घणी रे लो ।। १४ ।। स० ॥ जे हुयइ जीवन प्रांण ।। स० ॥ ते माणस मूकंता जीव वहइ नहीं रे लो ।। स०॥ अपजस सहइ अनेक ॥ स०॥ प्रेम तणी जाइयइ किम वात किण कही रे लो॥ १५ ।। सक। एक कहइ हित वात ॥ स० ॥ लोकां मई अन्याई नृप राम कहीजीयइ रे लो ।। स०॥ कुल नइ होइ कलंक ॥स०॥ ते रमणी रूडी पणि किम राखीयइ रे लो।। १६ ।। स० ॥ ऊखाणउ कहइ लोक ॥ स०॥ पेटइ को घालइ नहीं अति वाल्ही छुरी रे लो।। स० ॥ राम नई जुगतउ एम ।। स०॥ घर मइ थी सीता नई काढइ बाहिरी रे लो ।। १७ ॥ स०॥ सेवके एहवी वात ॥ स०॥ नगरी मइ साभलिनइ राम आगइ कही रे लो ।। स० ॥ राम थया दिलगीर ॥ स०॥ एहवी किम अपजस नी बात जायइ सही रे लो॥ १८ ॥ स०॥ १-न्याई।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy