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( २०१ ) जां लगि कामी कोइ ॥ स॥ प्रारथना न करई बहुपरि समझावतो रे लो॥ ८॥ स०॥ एहनइ रावणराय ॥ स० ॥ वीनति नव नव वचने वसि कीधी घणुं रे लो ।। स०॥ राची अस्त्रा रंगि ॥ स०॥ तन मन धन सगलो आपइ आपणुं रे लो॥॥ स० ॥ एक कहइ वलि एम ॥ स०॥ सीता नइ जाणो तुम्हे जगि सोभागिणी रे लो ।। स० ॥ नारी सहस अढार ॥स० ॥ मंदोदरि सारिखी सहु नइ अवगणी रे लो॥१०॥ स० ॥ लंकागढ नो राय स०॥ सीता सुं लपटाणो राति दिवस रह्यो रे लो। स० ॥ मनवांछित सुख माणि ॥ स०॥ सीता पणि कीधो सहु जिम रावण कह्यो रे लो॥ ११॥ स०॥ साचो ते सोभाग ॥ स०॥ सीलरतन साचइ मन पूरउ पालीय रे लो। स०॥ न करइ वचन विलास ॥ स०॥ पर पुरुषा संघात परचउ टालियइ रे लो॥ १२ ॥ स०॥ जुगति कहइ वलि एक ।। स० ।। कुसती जउ सीता तर किम आणी धणी रे लो ।। स०॥
कहइ अपरा वलि एम ॥ स० ॥ . अभिमानई आणी रमणी आपणी रे लो ॥१३ ।। स० ॥