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________________ [ २१ ] ८-जैन रामायण-राजस्थानी भाषा के विशिष्ठ कवि जिनराज सूरिजी ने आचार्य पद प्राप्ति से पूर्व (राजसमुद्र नाम था, सं० १६७४ में आचार्य पद ) इस रामचरित कथा की संक्षेप में रचना की। इसकी एक मात्र समकालीन लिखित २८ पत्रों की प्रति कोटा के खरतर गच्छीय ज्ञानभंडार में है, पर उसमें प्रशस्ति का अंतिम पद्य नहीं है। -लव कुश रास-पीपल गच्छ के राजसागर रचित, इस रास में राम के पुत्र लव कुश का चरित वर्णित है । पद्य संख्या ५७५ (ग्रंथाग्रन्थ १००) है। संवत् १६७२ के जेठ सुदि ३ बुधवार को थिरपुर में इसको रचना हुई। उपर्युक्त पाटण भंडार में इसकी १२ पत्रों की प्रति है। १०-सीता विरह लेख-इसमें ६१ पद्यो में सीता के विरह का वर्णन पत्र प्रेषण के रूप में किया गया है। संवत् १६७१ की द्वितीय आसाढ पूर्णिमा को कवि अमरचन्द ने इसकी रचना की। जन गूर्जर कविओ भाग १ पृष्ठ ५०८ में इसका विवरण मिलता है। — ११-सीताराम चौपई-महाकवि समयसुन्दर की यह विशिष्ट कृति है। रचनाकाल व स्थान का निर्देश नहीं है पर इसके प्रारम्भ में कवि ने अपनी पूर्व रचनाओ का उल्लेख करते हुए नल दमयंती रास का उल्लेख किया है जो संवत् १६७३ मेडते में रायमल के पुत्र अमीपाल, खेतसी, नेतसी, तेजसी और राजसी के आग्रह से रचा गया। अतः सीताराम चउपइ संवत १६७३ के बाद ( इन्हीं राजसी आदि के आग्रह से रचित होने से) रची गई। इसके छठे खण्ड की तीसरी ढाल मे कवि ने अपने जन्म स्थान साचोर में बनाने का उल्लेख किया है। कविवर के रचित साचौर का महावीर स्तवन संवत् १६७७ के
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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