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________________ ( १७६ ) तीर सडासड मारिनई, तुरत कीयो ते दूरि । रावण उठ्यो रीस भरि, नजरि करी अतिर ।। ११ ।। रांवणनइ देखी करी, लखमण उठ्यो वेगि । रे तसकर ऊभउ रहे, देखि मोरितुं तेग ।। १२ ।। रे भूचर रावण कहई, तुझसुं करंता युद्ध । हु लाजु तुं जा परउ, विद्या मुज्झ विसुद्ध ।। १३ ॥ लखमण कहई लाज्यो नही, पर नी हरतो नारि । रे पापी इण पगि रहे, आq गर्व उतारि ।। १४ ।। रे पापिष्ट निकृष्ट तुं, निरमरजाद निलज्ज । इम निभ्रंछी नाखियो, रावण कियो अकज्ज ।।१५।। रावण अति कोप्यो थको, भलका नाखई भीड । गगन सरे करि छाइयो, जाणो अड्या तीड ॥ १६ ॥ लखमण वार्या आवता, कंकपत्र करि तेह। । शस्त्र रहित रावण कियो, राखी सवली रेह ।। १७ ॥ सर्वगाथा ||७२॥ ढाल बीजी ॥ हो रंग लीयाँ हो रंग लीयां नलद० एहनी जाति ।। रावण वहु रूपिणी बोलावी, ते पणि वेगि ऊभी रही आवी ॥१॥ रावण लखमण सेती ममइ, पिण काई अगली बात न सूझई ॥२॥ २--याव्या
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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