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________________ [ १६ ] राजस्थानी भाषा में रामचरित सम्बन्धी रचनाओं का प्रारम्भ १६वीं शताब्दी से होने लगता है और २०वीं तक उसकी परम्परा निरन्तर चलती रही है। उपलब्ध राजस्थानी भाषा के रामचरित्र गद्य और पद्य दोनों प्रकार के है। इसी प्रकार जैन और जेनेतर भेद से भी इन्हें दो विभागों में बांटा जा सकता है। इनमें जैन रचनाओं की प्राचीनता व प्रधानता उल्लेखनीय है। रामचरित्र सम्बन्धी राजस्थानी जैन रचनाओं में से कुछ तो सीता के चरित्र को प्रधानता देती है कुछ रामचरित्र को पूर्णरूप में विस्तार से उपस्थित करती है तो कुछ प्रसंग विशेप को संक्षिप्त रूप मे। १-दि० ब्रह्म जिनदास रचित रामचरित्र काव्य ही राजस्थानी __ का सबसे पहिला राम काव्य है । इस रामायण की रचना सं० १५०८ में हुई, इसकी हस्तलिखित प्रति डुंगरपुर के जैन मन्दिर के भण्डार मे है। २--इसके बाद जैन गुर्जर कविओ भाग १ के पृष्ठ १६६ में उपकेश गच्छ के उपाध्याय विनयसमुद्र रचित पद्मचरित का उल्लेख पाया जाता है। यह रामचरित्र काव्य जो सं० १६०४ के फाल्गुनमें बीकानेर में रचा गया है। दोनों अभिन्न ही है। पद्मचरित के आधार से बनाया गया। विनयसमुद्र के पद्मचरित की प्रति गौड़ीजी भंडार उदयपुर में है। " ३-पिंगल शिरोमणि-सुप्रसिद्ध कवि कुशललाभने जैसलमेर के महाराजकुमार हरराजके नाम से यह मारवाड़ी भाषा का सर्व प्रथम छंद प्रथ वनाया है उदाहरण रूप में राम कथा वर्णित है। राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर से प्रकाशित हो चुका है।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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