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________________ मुंकति जायइ अगनि माला, हनुमंत काठी ग्रहो। कामिनी रूपइ कहइ सुणि तुं, दोस माहरउ को नही ।। तु मुंकि मुझ नइ वात सांभलि, मई सहु को संतापीयो। हुँ सकति रूप अमोघ विजया, लखमणनो अंग फरसियो ।।२।। अष्टापद नाटक कीयो, रावण आणी रंगोजी। नृत्य करइ मंदोदरी, भगवंत भगति अभगोजी ।। भगवंत भगति अभंग करता, वीण तात त्रूटी गई। तिण मुजा थी नस काढि साधी, भगति भगवंत नी थई । ए सकती दीधी नागराजा, रावण अपरि रंजीयो । ए आज पहिली किण न जीती, अष्टापद नाटक कीयो ||३|| आज विसल्या मुझ तणो, जीतउ तेज प्रतापोजी। पूरव भव तप आकरा, इण कन्या कीया आपोजो ।। कीया आकरा तप एणि हुँ. हिव जाउंछु मुझ छोडि दे । सापुरुष खमि अपराध माहरउ, बात जुगती जोड़ि दे। इम छोडि दीधी सकति नइ हिव, आगला संबन्ध सुणो। कीयो राम नइ परणाम कन्या, आज विसल्या मुझ तणो ||४|| लखमण पासि वइठी जई, आदर दीधो रामोजी । कर सुं लखमण फरसीयो, सुरचंदन अभिरामोजी ॥ अभिराम लखमण थयो वइठो, सावधान थयो तदा । पूछियो कहो ए विरतात कुग, ए कहइ राम सुणो मुदा। रावणइ सकति प्रहार मुक्यो, तुं पड्यो अचेतन थई । इण कुंयरि तुझ नइ दीयो जीवित, पीडा सहु दूरइ गई ।।५।।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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