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________________ ( १५८ ) ते रमती घर उद्यान हो, दीठी प्रतिष्ट नगरी नड राजीयइ। पुणवसु तेहनउ अभिधान हो, सवलो विद्याधर ते कामी घj ||१०रा० तिण अपहरी कुमरी तेह हो, चक्रवर्ति सुभटे जुद्ध सबलो कीयो । तसु जाजरी कीधी देह हो, भागउ विमान नई कन्या भूपडी ||१|| ते अडवी डंडाकार हो, पडता दुखीणी कुमरी अति घणुं। करइ दुखु अनेक प्रकार हो, अवाण असरण तिहा रहइ एकली ।।१२।। वरई अरिहंत नउ ध्यान हो, सहुं संसार असार करी गिणई। तमु सूधू समकित ज्ञान हो, तप करइ अट्ठम दसम ते आकरा ||१|| ते भोजन करइ इकवार हो, फल फूल खायइ तप नइ पारण: । उण रहणी रहता अपार हो, त्रिणसइ वरसां सीम तप कीयो आकरो १४ संलेपण कीधी एम हो, अणसण की, चउविहार याकरूं। तसु धरम ऊपरि वहु प्रेम हो, वलि तिण कीधउ अभिग्रह एवउ ॥१३॥ सउ हाथ उपरि मुम नीम हो, इहाथी अधिकी धरती जाउं नहीं। इम दिवस छठ्ठा लगी सीम हो, रहतां चडते परणामे चडी ।।१६। रा० तेहवइ मेरु प्रतिमा वादि हो, आवतइ दीठी किण विद्याधरई। ते पभणईएम आणंद हो, चालि पिता पासि मुकुं तुज्म नई ॥१७ारा० कहइ कन्या ताहरी ठाम हो, तुं जा ताहरउ अधिकार इहा नहीं। ते पहुतो चक्रपुर गाम हो, वात कहइ सगली चक्रवर्ति नइ ।।१८॥ रा० पुत्री नइ ते गयो पासि हो, चक्रवति प्रेम घणउ पुत्री तणो । अजगिर आवी गली तारु हो, किमही न टलइ ए भवितव्यता ॥१६॥रा० ते विरतांत देखी वाप हो, द्रउडी नई आयो नगरी आपणी । वे करतउ कोडि' विलापहो, वइराग आयउ मन माहे आकरउ ।।२०।। १-विरह
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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