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________________ ( १३७ ) सिंहनाद खेचर कहड, एतो वात अयुक्त । आतम हित ते कीजियई, संत तणो ए सूक्त ।।८।। हनुमंत भागा जेहना, लंका भुवन प्राकार । ते रावण कोपी रह्यो, अम्हनइ नाखिस्यमारि ॥६॥ चंदरसमि तेतइ कहइ, सिंहनाद सुणि एह । कुण वीहइ रावण थकी, अम्ह वल कटक अछेह ।। १० ॥ राम तणकटकई मिलई, कुण कुण सुभट अभंग । नाम सुणो हिव तेहना, जे कर सवलो जंग ॥ ११ ।। || सवगाथा १६६ ।। ढाल ३ पद्धडी छदनी अति सवल घनरति सिंहनाद, घृतपूरह' केवलि किल प्रल्हाद । कुरुभीमकूट नई असनिवेग, नलि नील अंगद सवल तेग ॥ १॥ वजू बदन मंदरमालि जाण, चद्रजोति केता करूं बखाण । रणसीह सिंहरथ वजूदत्त, लागूल दिनकर सोमदत्त ॥ २॥ रिजुकीर्ति उलकापातु धोर, सुग्रीव नई हनुमंत वीर। वलि प्रभामंडल पवनगत्ति, इंद्रकेत नइ प्रहसंत कित्ति ।। ३ ।। भलभला एहवा सुभट भट्ट, वानर कटकमइ अति प्रगट्ट ॥ चंद्ररसमि विद्याधर वचन्न, सुणि करई वानर रण जतन्न ।। ४ ।। तिण वेलि कोपइ चड्या राम, चाडियो त्रिसलि नजरि स्याम ।। आफालियो निज धनुप चाडि, सिंहनाद कीधो बल दिखाडि ।।५।। १-घृतवरह
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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