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________________ ( १३१ ) पति अनंगकुसमानो ए नर, पणि थयो धरणीधर वर । कहइ हनुमंत सभिलि मदोदरी, तसु उपगार अधिकतर ॥२०॥ सी० प्रत्युपकार करण भणी सुंदरि, दूतपणउ अम्ह भूषण । पणि तुसीता विचि थइ दूती, ते मोटो तुझ दूपण |२१|| सी० जिण कारणि कवियण कहइ एहवा, अन्य रमणि नी संगति । अस्त्री प्रीतम नइ वांछइ नहीं, वर तजई प्राण अहंकृत्ति ॥२२॥ सी० कोपकरी मंदोदरी कहा किम, सुग्रोव वानर प्रमुखा । दसमुख पंचानन सेवा तजि, राम मुंबक भजई विमुखा ॥२३।। सी० तिण कारणि तु छोडि रामनइं, भजि रावण राजेसर । सुणि हनुमंत तुं करि आतम हित, ए मुझ पति परमेसर ॥२४॥ सी० अहंकार वचन सुणि सीता कहई, कां तुंमुझ पति निदइ । वजावरत धनुप जिण चाड्यो, जगत सहू पद वंदइ ।।२।। सी० रिपु गज घटा विडारण केसरि, लखमण जास सहोदर। थोडा दिवसमईतु पणि देखिसि, प्रगट रूप परमेसर ॥२६॥ सी० तुझ पति अपराधी नई देस्यइ, मुझ पति डंड प्रबलतर। पापी जीव भणी जिम प्रायश्चित्त, धइ गीतारथ सदगुर ॥२७। सी. वचन सुणी सीता ना कोपी, मंदोदरि करइ भरछन । पापिणि माहरा पतिनै इम तु, का बोलइ ए कुवचन ॥२८॥ सी० यष्टि मुष्टि प्रहारै सीता, मारण माडी पापिणी । फिट फिट करि हनुमंत निभ्रंछी, निरपराध संतापणि ||२६|| सी० कहइ मंदोदरि जइ रावणनइ, हनुमंत दूत समागम | सेना सुं हनुमंत नइ भोजन, सीता द्यइ सुमनोगम ||३०|| सी०
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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