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________________ ( १२१ ) गाम नगर वन गिरि गुहा, जोतो थको सुग्रीव । कंबुसेल सिखरई चढ्यो, सुणी रतनजटि रोव ॥शा सुग्रीव पृछ्यो का इहा, दुखियो रहइ अत्यन्त । ते कहइ सुणि सुग्रीव तं, सगलो मुझम विरतंत ॥६॥ रावण सीता अपहरो, ले जातो थको दीठ। मइ सीतानई राखिवा, केडइ कीधी पूठि ॥७॥ जुद्ध करतां रांवणइ, दीधो सकति प्रहार । विद्या छेदी माहरी, तिण हुँ करुं पोकार ||८|| राम समीपइं पणि हिवई, जा न सकं करु केम । सुग्रीव ऊपाडी गयो, राम समीपि सप्रेम ||६|| रतनजटी विद्याधरई, प्रणमी रामना पाय । कहइ सीतान ले गयो, रावण लंकाराय ||१०|| वात कही सहु आपणी, झगडठ कीधो जेम । मुम विद्या छेदी तिणई, आवी न सक्यो तेम ||११|| सीता खवरि सुणी करी, हरष्यो श्रीरामचंद। रोमाचित देहो थई, सिंची अमृत बिंद ॥१२॥ सीता आलिंगन सारिखो, सुख पायो सुजगीस । डीलतणा आभरण सहु, कर राम वगसीस ॥१३॥ रामचन्द्र पूछ्यो वली, विद्याधर कहो मुज्म । लंका नगरो छई किहां, किहा ते सत्रु अबुज्म ॥१४||
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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