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( १२० ) लखमण सुं इम कहतो, रामतणइ पासि पहुतो। कीधो राम नई प्रणाम, करजोडी कहइ आम ||५|| हिव हुं जाउंछं स्वामि, निरति करिसि ठामि ठामि । तुम्हें धीरप धरिज्यो, मुझ उपरि कृपा करिज्यो॥५१॥ एहवई सातमी ढाल, पूरी थई ततकाल । समयसुंदर इम बोलई, सीतानई कोइ न तोलई ॥५२।। पाचमो खंड रसाल, पूरुं थयो सात ढाल। समयसुंदर कहइ आगई, कहतां दिन घणा लागई ॥५३।।
सर्वगाथा |३४|| इति श्री सीताराम प्रबन्धे सीता संहरणनाम पचम खडः समाप्तः ।।
खंड ६
दहा १४ मात पिता प्रणमें सदा, जनम दीयो मुझ अण । वांटुं दीक्षागुरु वली, धरमरतन दीयो तेण ||१|| विद्यागुरु वांदु वली, ज्ञान दृष्टि दातार। जगमाहिं मोटो जाणिज्यो, ए बिहुँनो उपगार ।।२।। ए त्रिहुनई प्रणमी करी, छट्ठो खंड कहेसि । पटरस मेली एकठा, सगला स्वाद लहसि ।।३।। सुग्रीव सेवक साथि ले, निसस्यो खबरि निमित्त । भामंडल भाई भणी, मुंक्यो लेखु तुरत्त ||४||
१-मुदा