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________________ ( ११० ) वइसी करी कहइ एम, दिलगीर थाई केम । रावण जिसो भरतार, पुण्य हुइ तो द्य३ करतार ।। २३ ।। कल्पवृक्ष दुरलभ जेम, प्रीतम दसानन तेम। ए रतनाश्रवनो पुत्र, एहन राजस सूत्र ।। २४॥ ए रूप तो कंदर्प, रूठो तो कालो सर्प । अपछरानइ दुरलंभ, बाछते तुंनउ अचंभ ॥ २५॥ भोगवि तुं भोग सुरम्म, करि सफल आपणो जम्म । कहइ जनक तनया ताम, ए ताहरो नहि काम || २६ ।। जे सती हुवइ लवलेस, ते न घइ ए उपदेस। जे हुयइ सुभगाचार, ते न द्यइ कुमति लिगार ।। २७ ।। मंदोदरी तु जाणि, किम प्रीति होवई प्राणि । मंदोदरी कहइ जेम, तुं कहइ वात छइ तेम ।। २६ ॥ जो पडई कारण कोइ, तउ अजुगतो पणि होई। पति प्राण धारण कज्जि, इम कह्यो मइ निरलज्जि ॥ २६ ।। मुनिव्रत विराधन नित्त, निज जीवितव्य निमित्त । वलि करि दसानन आस, आवीयो सीता पासि ॥ ३०॥ तुझ पतिथकी कहि केण, ओछठ छ गुणे जेण । तुं नादरई मुझ काइ, ए निफल दिन सहु जांई ।। ३१ ।। सीता कहई करि रीस, तु साभले दससीस । मुम दृष्टि थी जाइ दूरि, मत छिवइ अंग हजरि ।। ३२॥ जो हुयइ साक्षात इंद, अथवा तु हुयई असुरिंद। वलि हुवई तु कामदेव, जठ करई अहनिसि सेव ।। ३३ ।।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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